स्वाति
?स्वाति ?
स्वाति बचपन से यही देखती आई है, कि उसकी माँ कभी भी किसी भी भिखारी को खाली हाथ नहीं जाने देती थी। किसी को पापा के, भाई के और उसके पुराने कपड़े तो किसी को अपनी पुरानी साड़ी, कभी कुछ पैसे खाना जो भी बन पड़ता माँ दे देती थी। भिखारी भी ढ़ेर सारा दुआएँ देकर जाता। स्वाति की माँ कहती कि बेटा इन्सान नीच से भी नीच श्रेणी में गिरता है, तब हाथ फैलाता है। पर वह इन्सान उससे भी नीच है जो उस हाथ पर कुछ नहीं रखता है। जितना भी बन पड़े दे दो। दरवाजे से कोई भूखा नंगा ना जाये। देने से कभी घटता नहीं है। माँ भिखारी के नाम से जो भी चीज जैसे रोटी, कपड़े, पैसे बाहर निकालती थी, अगर वह चला गया तो उसे पलट कर घर में नहीं रखती थी। बाहर ही सम्हाल कर रख देती थी। फिर किसी दूसरे को दे देती थी और खाना जानवरों को पर घर के सदस्य इस्तेमाल ना करे सदा ध्यान रखती थी। एक दिन स्वाति ने भी जब दरवाजे पर भिखारी को देखा तो रोटी लेकर जाने लगी तब माँ ने सख्त हिदायत दी कि कुवारी लड़कियाँ भीख नहीं देती। हमारे बड़े बुजुर्गों ने कहा है। स्वाति ने रोटी माँ को दे दी। पर फिर भी रास्ते में कभी-कभार कुछ पैसे या अपना लंच दे ही देती थी। स्वाति बड़ी हो गई। उसका विवाह एक अच्छे परिवार में हुआ। पर उस घर में औरत के नाम पर कोई नहीं थी ना सास ना ननद अतः स्वाति को ससुराल जाते ही रसोई सम्हालना पड़ा। घर में उसको मिलाकर मात्र चार सदस्य थे ससुर, देवर, पति और स्वयं। दूसरे दिन ही दरवाजे पर एक भिखारी आता है। उसके ससुर जी उसे डाँट कर भगा देते हैं। वह चुपचाप देखती रह जाती है पर कुछ पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है। चौथे दिन वह घर के सभी सदस्यों को खाना परोस रही थी कि तभी दरवाजे पर एक भिखारी ने आवाज़ लगाई। वह खाना तो परोस रही थी पर उसका ध्यान दरवाजे पर था। उसकी मनोदशा को उसके ससुर जी भाप गये। उन्होंने पूछा बहु क्या हुआ बार – बार दरवाजे की तरफ क्यों देखें जा रही हो। वह हिम्मत करके बोली पापा बाहर कोई भिक्षु खड़ा है, उसे भी कुछ खाने को दे दूँ। वे खाने टेबल से ही बाहर झांकते हुए बोले क्यों नहीं पर पहले देख कर बताओ कि वह मजबूर है, लाचार है, तुम्हें उसमें क्या कमी दिख रहा है, कि वह भीख मांगता है। वो सोलह सत्रह साल का लड़का है जिसका हाथ पैर सही सलामत है वह मेहनत से रोटी खा सकता है पर नहीं एक आसान उपाय है भीख मांगना और तुम जैसे लोग इसे भीख देकर और बढावा देते हो। वह बोली हो सकता है पापा जी उसकी कोई मजबूरी हो। वो बोले ठीक है उससे पूछो हमलोगों ने जो अभी खाना खाया है वह सारे बरतन की सफाई कर दे तो मैं उसे खाना के साथ साथ कुछ पैसे भी दूंगा हो सके तो कही काम पर भी लगा दूंगा। यह सुनते ही स्वाति के चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे। वह भागते हुए दरवाजे पर पहुँची और उस लड़के से बोली मैं जानती हूँ कि तुम कुछ मजबूरी के कारण भीख मांगते हो आज से तुम्हें भीख नहीं मांगना पड़ेगा। तुम मेरे घर के कुछ झूठे बरतन पड़े हैं उसे तुम साफ कर दो मेरे पापाजी तुम्हें भर पेट खाना और पैसे भी देगे और तुम्हारे लायक किसी काम पर भी लगा देगे वैसे तुम क्या करना पसंद करते हो चलो आ जाओ अंदर । यह सुनते ही वह बालक बिना जवाब दिये ही दूसरे के दरवाज़े पर भीख मांगने चला गया और वह उसे जाते हुए दरवाजे पर खड़ी अवाक देखती रह गई……….. ।
????—लक्ष्मी सिंह ?☺