स्वागत है
भानु!
प्राची दिशा की ओर से
धीरे-धीरे
क्षितिज की कोर से
उठा रहा है ऊँचा सर अपना
आश्चर्य से देख रहा है
धरती पर पसरे अँधेरे को
हो रहा है क्रोध से लाल
फैल रही है उसकी लालिमा
धरती आकाश में चहुँ ओर
डरा-सहमा अँधकार सिमटने लगा है
हवा से हिलते वृक्ष
कर रहे हैं सूर्य का स्वागत
छिटकने लगी है सुहानी भोर
वृक्ष कीकोटर से निकलकर पक्षी
आ बैठा है निर्भय,
निर्द्वंद्व
मानव के हाथों रची
अपनी नियति से अनजान
प्रगति के बिछाए विद्युत तारों पर
कर रहे हैं प्रयास
सूर्य को सौम्य बनाने का
गाने लगे हैं मधुर गीत
हाँ, हँस दिया है दिनकर
और छिटकने लगा है
सुनहरा उजाला
खिसकने लगा है अँधकार
आइए!
स्वागत करें इस मधुर प्रभात का