स्वागत है रामलाला
स्वागत है ! अभिनंदन है !
रामलला रघुनंदन हैं
चंदन- सुमन से वंदन है
खुलें हैं हमारे घर द्वार।
समाप्त हुई प्रतीक्षा
खत्म हुआ इंतजार
आएं है कौशल्या नंदन
आज हमारे द्वार।
त्रेता में आएं थे आप
अवध में पहली बार
बनके सबके तारणहार
राजा दशरथ के द्वार।
महर्षि वशिष्ठ ने नाम दिया
विश्वामित्र ने ज्ञान दिया
ले गए स्वयंवर में तुम्हें
राजा जनक – द्वार।
मंथरा के उकसाने पर
कैकेई के चिर – लंबित वर
राज तिलक के शुभ दिन ही
छूट गया आपका राजद्वार।
पिता से लेकर आशीष
माताओं से लेकर प्यार
जन जन से लेकर स्नेह
चलते रहे वन बारंबार।
भरत नहीं थे अपने घर में
गए हुए थे अपने ननिहाल
दशरथ को ले गए काल
रोते -रोते सभी का हाल बेहाल।
बरसेंगे उनकी कृपा सब पर
सब्र का अंत होगा तब
जब खायेंगे जूठे बेर
आकर सबरी के द्वार।
ऊंची- नीची पहाड़ों से होकर
पहुंचे किष्किंधा पर्वत पर
बाली को मारे, सुग्रीव को अपनाए
अंजनी -पुत्र को दिए अपना प्यार।
गौतम ऋषि के श्राप से
पत्थर बन गई थी जो
स्पर्श कर उस पत्थर का
किया अहिल्या उद्धार।
नल – नील ने सेतु बनाया
लंका पहुंच रावण का वध कर
विभीषण को देकर राज, आएं
सीता लक्ष्मण के साथ अपने द्वार।
जन्मभूमि आपका फिर से
नव्य -दिव्य बन गया है
विराजो अपनी जन्मभूमि पर
कर दो भारत का भव्य भाल।
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@मौलिक रचना घनश्याम पोद्दार
मुंगेर