“स्वागत हैं”
आंकड़ों के ज़माने में,
किताबों के आशियाने में;
स्वागत हैं।
कुछ मानने – मनाने में,
एक दूजे को समझाने में ;
स्वागत हैं।
ज्ञान संग व्यवहार से ,
विवेक संग स्वाभिमान से,
पुरजोश खुद को बनाने में;
स्वागत हैं।
भीतर से, बाहर से,
चाल- ढाल ; आहट से,
शख्सियत सजाने में,
स्वागत हैं।
कक्ष नहीं परिवार हैं,
कॉलेज नहीं घर बार हैं,
इसका सम्मान कहलाने में;
स्वागत हैं।
शुरू आपसे सरोकार हैं,
आपके खातिर ये दरबार हैं,
इस तालिमी मयखाने में;
स्वागत हैं।।
ओसमणी ‘ओश’ रायपुर (छत्तीसगढ़)