जीवन आनंद
स्वस्थ रहना जीवन आनंद के लिए अतिआवश्यक है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ विचार आते हैं।
शारीरिक स्वास्थ्य का मानसिक स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। अतः यह प्रयास होना चाहिए कि शरीर स्वस्थ रहे।
शारीरिक स्वास्थ्य अनेक कारकों पर निर्भर रहता है।
प्रथम , नियमित दिनचर्या , अर्थात् समय पर सोना, समय पर उठना , पर्याप्त अवधि का निद्राकाल ,
व्यवस्थित सुचारू दिनचर्या , एवं प्रातः प्रारंभिक उल्लासपूर्ण ऊर्जा का संचार है।
द्वितीय , शरीर एवं मनस को स्वस्थ करने के रखने के लिए प्रयास जैसे व्यायाम , पैदल सैर , शारीरिक श्रम जैसे बागवानी , स्व कार्यकलापों में आत्मनिर्भरता , योग एवं ध्यान इत्यादि।
तृतीय , खानपान में नियंत्रण एवं ऊर्जा प्रदान करने वाले एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थो का एक संतुलित भोजन में समावेश। जैसे शाक सब्जी , मौसमी फल , दालें , प्रोटीन प्रदायक अन्न, अंडे (यदि परहेज न हो ) एवं पेय पदार्थ दूध ,दही का मट्ठा , फलों का रस इत्यादि।
जहां तक संभव हो सके अधिक वसा वाले पदार्थो एवं अधिक तीखे मसालों के सेवन से बचें।
अधिक मसाले वाले पदार्थों का सेवन करने से शरीर में अम्लीयता( acidity) की मात्रा बढ़ जाती है, और पाचन तंत्र पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। वसा युक्त पदार्थों जैसे तेल ,मक्खन, घी, क्रीम का खाने मे अधिक उपयोग शरीर में वसा की मात्रा को बढ़ाता है और शरीर का वजन बढ़ने लगता है ,
जिसके दुष्परिणाम विभिन्न शारीरिक समस्याओं एवं बीमारियों के रूप में प्रकट होते हैं।
शक्कर एवं शक्कर से बने मिष्ठानों का अधिक सेवन भी शरीर में शर्करा की मात्रा को बढ़ाता है, जिसके फलस्वरूप मधुमेह, वजन बढ़ना एवं अन्य शारीरिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं । अतः करके उपभोग में नियंत्रण करना आवश्यक है।
इसी प्रकार अधिक सामुद्रिक (सफेद) नमक का उपयोग भी रक्तचाप बढ़ाता है , जिसके फलस्वरूप ह्रदय रोग एवं अन्य शारीरिक समस्याओं एवं रोगों से प्रभावित होने की संभावना बढ़ती है।
सिगरेट ,तंबाकू ,एवं मदिरा का सेवन भी हृदय रोग एवं अन्य असाध्य बीमारियों का कारण बनता है। तथा इनके लगातार सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
अतः इस प्रकार के व्यसनों से बचे रहने का भरसक प्रयत्न करना आवश्यक है।
चतुर्थ , यह सर्वविदित तथ्य है कि स्वादिष्ट खाना हर व्यक्ति की पहली पसंद है। परंतु स्वाद के नाम पर तले हुए पदार्थों , पकवानों तथा मिष्ठानों का दैनिक जीवन में अधिक सेवन भी पाचन तंत्र को खराब कर अनेक बीमारियों को निमंत्रण देना है। अतः इन पदार्थों के उपभोग में नियंत्रण आवश्यक है।
पंचम , हम जितना खाना खाते हैं , उसके अनुरूप परिश्रम करना भी अनिवार्य है। जिससे खाया हुआ खाना पाचन तंत्र से होकर ऊर्जा में परिवर्तित हो सके और तथा हम शरीर में उसके वसा रूप में संग्रहित होने से बचे रह सकें।
पाचन क्रिया के लिए विश्राम एवं निद्रा भी आवश्यक है। अनिद्रा एवं पर्याप्त निद्रा के अभाव में पाचन तंत्र प्रभावित होता है तथा अनेक शारीरिक समस्याओं को जन्म देता है ।
हमारी जीवन शैली का भी अप्रत्यक्ष रूप से हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। कंप्यूटर में बैठे घंटों कार्यरत रहना , एक ही स्थान पर बैठे हुए घंटों टीवी देखना हमारे शरीर के अंगों मैं सुचारू रूप से रक्त प्रवाह को प्रभावित करता है। जिसके कारण कमर दर्द ,जोड़ों का दर्द, रीड़ की हड्डी में दर्द , एवं
एकटक देखते रहने से आंखों में थकान एवं दृष्टि दोष उत्पन्न होते हैं। अतः समय-समय पर यदि एक स्थान पर कार्य कर रहे हों तो उठ कर कुछ समय टहलना एवं कुछ पल के लिए शरीर एवं आंखों को विश्राम देना भी आवश्यक है, जिससे रक्त प्रवाह सामान्य हो सके एवं आंखों को आराम मिल सके।
आलस्य स्वास्थ्य के लिए प्रमुख दुश्मन है।
आधुनिक विलासिता की वस्तुऐं जैसे टीवी, फ्रिज , स्कूटर ,कार , मोटरसाइकिल वाशिंग मशीन इत्यादि जो आम आदमी की जरूरत बन चुके हैं ,ने बहुत हद तक आदमी को आलसी बना दिया है।
वाहन होने के कारण छोटी-मोटी दूरियों के लिए भी आदमी ने पैदल चलना छोड़ दिया है , जिसका प्रतिकूल प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
वाशिंग मशीन होने के कारण अपने कपड़े रोज धोने का श्रम भी आदमी नहीं करना चाहता है , जिससे उसके आलस्य में बढ़ोतरी हुई है।
इन सभी तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए यह आवश्यक है कि हम अपने आप को स्वस्थ रखने के लिए एक संकल्पित भाव से प्रयत्नशील रहें।
स्वस्थ एवं सुखी जीवन जीने के लिए हमें अपनी जीवन शैली में आवश्यक बदलाव लाने पड़ेंगे, जिससे हम शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहकर जीवन का भरपूर आनंद ले सकें।