“स्वर्णिम युग आया हम लोगों का “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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बड़ा ही घमंड हो गया था
पांच सौ और एक हजार के नोटों को
बहुत इतराते थे
जहाँ देखो पार्टिओं में ,उपहारों में ,
नाच गानों में अपना
धोंस दिखलाते थे
हम सौ ,पचास ,बीस ,दस
और खुदरा दुबक गए थे
हम अनाथ बन के
संदूकों के काल कोठरियों में छुप गए थे
कभी -कभी लघु छिद्रों से
उचक कर महारथिओं को झांक लेते थे
पर हमारी पीड़ा को
किसीने नहीं समझा
सभी नजर अंदाज कर लेते थे
हमें एक आश थी
हमारे दिन भी लौटेंगे
हमें आज़ाद करके
हमें सर पर बिठाएंगे
अब हमारी आ गयी बारी
कुछ दिनों तक हम भी नाचेंगे
अठ्ठनी और सिक्के ‘नाच बलिये ‘ के मंच
पर अपना जलवा दिखायेंगे
हम छोटे नोट भले ही तिरष्कृत रहे
गुमनाम पर्दों में छुपछुपके सिसकियाँ भरते रहे
अब हमें भी मौका मिल गया
हम ऑर्केस्ट्रा बजा के शमां को बांधेंगे !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड