स्वर्णिम भारत की बेटियाँ
संसार की सार अाधार हो तुम
जीवन की हर सत्कार हो तुम
मंगल शांति सुविचार हो तुम
हर वीर मन की पुकार हो तुम
प्रतिपल मन कहता हे बेटी
जंजीरों में जकडी तु लेटी !
विषयुक्त हवाओं से तु सेवित,
सर्वत्र क्लान्त, क्रंदन से प्रेरित
है बहुत प्रबुद्ध थके उद्भासित्
अहा कैसा भयानक परिलक्षित् !
हर श्वास में प्रवास में,
जीवन विधा की आस में,
अन्याय की प्रतिकार में,
तु दीख रही हर पुकार में !
तुझसे सुवासित हर आलय है,
सुमंगल दीखता देवालय है |
है सत्य ! नारियों ने कितनी कष्ट सही है,
दुनिया इन पर असंख्य अत्याचार ढही है,
आज अभी भी भूखों बहुत, बिकती खुले बाजार में,
असंख्य अनैतिक अत्याचार होते,
व्याभिचारियों के पनाहगार में |
कुछ उन्नत उच्चाकांक्षाओं से, पाती है रोटियाँ ;
स्वर्णिम् भारत की अविस्मरणीय कथानक लिख रही है बेटियाँ !
©
कवि आलोक पाण्डेय