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4 Dec 2021 · 1 min read

स्वर्णिम पानी

स्वर्णिम जल

जिन्हें चमकना है जल जल कर उनका है सम्मान कहो।
है दिनकर का अंत रंग ये जलने का अरमान कहो।

जलने वाले सदा दिखे हैं भगवा भगवा सेनानी।
अग्नि पंथ पर जो प्रशस्त हैं उन्हें मिला स्वर्णिम पानी।

सम्राट बना वो आसमान का जिससे यहांँ उजाला है।
स्वर्ण रंग बस मिला उसे ही जिसके मन में ज्वाला है।

सदियों तक जो भी जला यहांँ उसने ही पाया स्वर्ण रंग।
है प्रशस्त जो पुण्य पथों पर वो बिखराया स्वर्ण रंग।

स्वर्ण रंग का कवच लिया जब कर्ण युद्ध को आया था।
परम पिता परमेश्वर को भी रण में बहुत छकाया था।

देख छकाते कर्ण को ऐसे अर्जुन बस मुस्काए थे।
ज्ञात उन्हें था स्वयं सूर्य को कान्हा नेत्र बनाए थे।

उस परम पिता परमेश्वर का तो स्वर्ण रंग का छाया है।
तभी कर्ण का वध करने को उसने सूर्य डुबाया है।

स्वर्ण रंग का सूर्य साक्षी ये इतिहास बनाया है।
अहो!भाग्य कहिए मिलना स्वर्णिम सूरज का छाया है।।

©®दीपक झा “रुद्रा”

Language: Hindi
388 Views
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