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30 May 2023 · 1 min read

*स्वर्ग लोक से चलकर गंगा, भारत-भू पर आई (गीत)*

स्वर्ग लोक से चलकर गंगा, भारत-भू पर आई (गीत)
➖➖➖➖➖➖➖➖
स्वर्ग लोक से चलकर गंगा, भारत-भू पर आई
1
चली कमंडल से ब्रह्मा के, शिव ने इसे सॅंभाला
एक जटा फिर खोल तृप्त, भागीरथ को कर डाला
देवनदी यह देवलोक से, पावनता है लाई
2
धन्य-धन्य यह देश हमारा, जुड़ा स्वर्ग से नाता
अमृत लिए हुए पावन जल, जहॉं स्वर्ग से आता
नदी नहीं साधारण है यह, वरदाई कहलाई
3
जीवित क्या मृत तर जाते हैं, जो गंगा को पाते
तट पर इसके पुण्य बस रहा, जन निहारने जाते
गंगा में डुबकी का मतलब, अनगिन है पुण्याई
4
गंगा का जल पिया राम ने, पीकर इसे सराहा
मज्जन करने को मुनियों का, मन इसमें नित चाहा
गंगाजली पूज्य आसन पर, सबने है बैठाई
स्वर्ग लोक से चलकर गंगा, भारत-भू पर आई
———————–
मज्जन = स्नान
———————-
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

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