स्वर्ग नरक कवि रत्न
हास्य
स्वर्ग नरक कवि रत्न
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आज राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के अवसर पर
विभिन्न संस्थाओं और साहित्यिक पटलों पर
हिंदी दिवस विशेष का आयोजन किया गया
दस बारह पटलों और दो चार संस्थाओं ने
मुझे भी बतौर अध्यक्ष, मुख्य अतिथि आमंत्रित किया।
कुछ जगह उपस्थित हुआ
तो कुछ जगह समय
और नेटवर्क का बहाना बना दिया।
पर आपको पता नहीं होगा
क्योंकि वहाँ का आमंत्रण
आप में से किसी को तो मिला ही नहीं होगा,
और मिलेगा भी नहीं
क्योंकि मेरी सहमति के बिना
वहां किसी को अवसर मिलेगा ही नहीं।
यमराज साहित्यिक मंच के आयोजन में
मुझे बतौर अध्यक्ष मुझे यमलोक बुलाया गया
आने जाने के लिए अपाचे हेलीकॉप्टर
ससम्मान उपलब्ध कराया गया,
आवभगत ऐसा कि पुछिए मत,
स्वर्ग नरक के कवियों कवयित्रियों का बड़ा जमघट था
धरती का मैं ही एक मात्र आमंत्रित कवि था
ऊपर से यह भी कि
विशेष आग्रह के साथ मुझे बुलाया गया था।
सारे देवी देवता विशिष्ट अतिथि थे
उनके लिए भी तो हम ही सबसे श्रेष्ठ थे।
सब मुझसे दो चार बातें करने को लालायित थे,
आगे मुझे घूम रहे थे
मौके की नजाकत समझ रहे थे,
अपना अपना जुगाड़ बैठा रहे थे
मेरे दर्शन मात्र को अपना सौभाग्य मान रहे थे।
पर यमराज बड़ा समझदार निकला
नारद जी को हाटलाइन से आमंत्रण भेजा
नारद जी जैसे इसी इंतजार में थे
बिना ना नुकुर के हाजिर हो गये ,
शानदार आयोजन के लिए यमराज की
तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे
मेरी उपस्थिति को यमराज का भौकाल बता
जैसे देवी देवताओं को आइना दिखा रहे थे,
शायद वे भी यमराज के पाले में आ गये थे।
देवी देवता बेचैन हो रहे थे
यमराज के आमंत्रण की अवहेलना न हो
इसीलिए सजधजकर सब आ गये थे।
पर यमराज ठहरा मेरा पक्का चेला
अब बारी मुझे सम्मानित करने की थी
सब इसी उधेड़बुन में लगे थे,
अब यमराज क्या करेगा मन ही मन सोच रहे थे।
तब तक यमराज ने
नारदजी को मंच पर आमंत्रित किया
और मुझे सम्मानित करने की
घोषणा करने का अनुरोध किया।
नारद जी भी जैसे जोश में आ गए,
मुझे “स्वर्ग नरक कवि रत्न” से
सम्मानित करने घोषणा कर गये।
यमराज के मन में लड्डू फूट रहे थे
सारे देवी देवता नारद जी को मन ही मन कोस रहे थे,
देवी देवताओं को इस आयोजन में बुलाकर
बेइज्जत करने के पीछे नारद की भूमिका देख रहे थे।
पर नारद कुछ कम विचित्र नहीं लग रहे थे
मुझे सम्मानित करने के लिए
सारे देवी देवताओं को मंच पर बुला रहे थे
फिर क्या था सारे देवी देवता मंच पर पधारे
मुझे सम्मानित करने की होड़ में
धक्का मुक्की करने लगे।
यमराज हाथ जोड़ कर निवेदन करने लगा
आप सब ऐसा न कीजिए
मेरी इज्जत का जूलूस न निकालिए,
चुपचाप जिसके लिए आप सब बुलाए गए हैं
नारद जी के अनुसार वो काम कीजिए
अध्यक्ष महोदय को सब मिलकर सम्मानित कीजिए।
सारे देवी देवता शर्माने लगे
चुपचाप मेरा सम्मान करने के लिए बारी बारी से आने लगे।
अंत में स्वर्ग नरक कवि सम्मान की बारी आई
मां शारदे तत्काल आगे आईं
और मुझे सम्मानित किया
मैं सचमुच धन्य हो गया, उनके चरणों में झुक गया
उन्होंने मुझे उठाया गले लगाया
और अनगिनत आशीर्वाद दे डाला।
धरती के सब पटल मिलकर जो न दे सके
यमराज और उसके आयोजन ने एक बार में ही
वो सब कुछ दे दिया,
जिसके सपने तक देखने की हिम्मत किसी में नहीं
मेरे तो वे सब सपने
यकीनन सपने में ही पूरे हो गये,
आप मानो न मानो
गोण्डा के सुधीर श्रीवास्तव जी
अब कवि रत्न सुधीर हो गये।
चौंकिए मत हम आपकी या आपके पटल की
अथवा धरती की बात नहीं कर रहें हैं जनाब,
हम तो यमराज की बात बता रहे हैं
उसने मुझसे एक सलाह मांगी थी
तो मैंने भी ईमानदारी से उन्हें
एक छोटी सी सलाह देकर
यमराज साहित्यिक मंच बनवा दिया
उसका प्रतिफल आज देखिए मिल गया।
स्वर्ग नरक में हम एक साथ छा गये,
अंगवस्त्र, श्रीफल और स्मृति चिन्ह के साथ
देख लो कवि रत्न के साथ
यमलोक से अभी अभी वापस आ गए।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित