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4 Aug 2022 · 4 min read

*स्वर्गीय कैलाश चंद्र अग्रवाल की काव्य साधना में वियोग की पीड़ा और कर्तव्य की अभि

*स्वर्गीय कैलाश चंद्र अग्रवाल की काव्य साधना में वियोग की पीड़ा और कर्तव्य की अभिलाषा के संवेदनशील स्वर
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डॉ मनोज रस्तोगी जी ने अपने व्हाट्सएप समूह “साहित्यिक मुरादाबाद” में स्वर्गीय श्री कैलाश चंद्र अग्रवाल (जन्म 18 दिसंबर 1927 – मृत्यु 31 जनवरी 1996) की साहित्य – साधना का स्मरण किया तो प्रारंभ में ही मंडी बाँस ,मुरादाबाद में जन्मे इस महापुरुष के जन्म के मोहल्ले का नाम सुनते ही एक आत्मीयता उत्पन्न हो गई । फिर पढ़ा कि उनका सर्राफा व्यवसाय था तथा एल.एलबी. करने के उपरांत अपने पैतृक सर्राफा व्यवसाय में ही पिता साहू रामेश्वर शरण अग्रवाल जी के साथ आपने दुकान पर बैठना आरंभ कर दिया था ,यह भी कि आपके पितामह श्री भूकन शरण अग्रवाल का भी मुरादाबाद में साहूकारा का पुराना कार्य चलता था । इन सब से आपसे एक आत्मीयता का संबंध बन गया। मंडी बाँस मुरादाबाद में ही मेरे नाना जी स्वर्गीय श्री राधे लाल अग्रवाल सर्राफ का निवास था। चार कदम पर मंडी चौक में नाना जी की सर्राफे की प्रतिष्ठित दुकान थी। कैलाश चंद्र अग्रवाल जी के संबंध में यह जानकर भी बहुत प्रसन्नता हुई कि आप सर्राफा व्यवसाय में संलग्न रहते हुए इतनी गहरी साहित्य – साधना में संलग्न रह सके ।
सात काव्य संग्रह आपके प्रकाशित हुए । चार सौ से अधिक गीत आपने लिखे, तीन सौ से अधिक मुक्तक आपके प्रकाशित हुए । आप की साहित्य साधना का प्रमाण इसी बात से स्पष्ट है कि 1995 में आपके गीतों पर रूहेलखंड विश्वविद्यालय से कंचन प्रभाती जी ने पी.एच.डी. की । तदुपरांत 2008 में पुनः आप के गीतों का अध्ययन श्रीमती मीनाक्षी वर्मा जी के द्वारा किया गया तथा इस पर पी.एच.डी. की उपाधि रूहेलखंड विश्वविद्यालय से पुनः प्राप्त हुई। किसी साहित्यकार के संबंध में शोध कार्य किया जाना इस बात का द्योतक है कि उसके लेखन में कहीं कुछ मूल्यवान अवश्य है।
काव्य में वियोग की वेदना
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आपके गीतों को पढ़ा तो हृदय द्रवित हो उठा । श्रंगार का वियोग पक्ष आपने जिस मार्मिकता के साथ लिखा है ,वह हृदय की वास्तविक वेदना को प्रकट करता है । इसमें वही लेखनी सफल हो सकती है ,जिसने स्वयं इस वियोग की पीड़ा को निकटता से देखा हो । इसी कारण अपने काव्य संग्रहों में स्वर्गीय कैलाश चंद्र अग्रवाल इतनी हृदयस्पर्शी अनुभूतियाँ उजागर कर पाए हैं। दिल को छू लेने वाले कवि के उद्गारों पर जरा नजर डालिए :-
जब जग सोता ,तब हम दोनों सपनों में बतिया लेते हैं
तुम अपनी कहती हो मुझसे ,मैं अपनी तुमसे कहता हूँ
प्राण ! तुम्हारी ही सुधियों में मैं निशदिन खोया रहता हूँ
यह स्वप्न में बातें करने तथा भौतिक जगत में दूरी बनाए रखने की विधाता की इच्छा के बावजूद कवि के अंतर्मन में उठ रही भावनाएं हैं ,जो गीत बनकर बही हैं ।
एक अन्य गीत में कवि ने अपने और प्रिय के बीच में जो दूरी बनी रही है ,उस विवशता को शब्दों का रूप दिया है । कवि ने लिखा है :-
तुम न मुझे अपना पाओगी
धरा न छू पाई अंबर को
कली न वेध सकी प्रस्तर को
अपने लिए सदा तुम मुझको
दर्द भरा सपना पाओगी
प्रायः इस प्रकार की विसंगतियाँ जीवन में देखने को मिलती हैं, जिसे एक संवेदनशील कवि मन ही व्यक्त कर पाता है। यह प्रेम है ,जिसे अध्यात्म की कसौटी पर बहुत ऊँचा स्थान दिया गया है । इसी प्रेम को केंद्र में रखकर स्वर्गीय कैलाश चंद्र अग्रवाल जी ने अपनी प्रचुर काव्य साधना की । यह विलक्षण मौन – साधना की कोटि में आने वाली एक तपस्वी की साधना कही जा सकती है ।
प्रेम के संबंध में आपका एक-एक मुक्तक सचमुच प्रेम को समर्पण की ऊँचाइयों तक ले जाता है । आप लिखते हैं:-
प्रीति में मिलती रही है हार ही
मानता फिर भी हृदय आभार ही
रूठ जाने पर मनाने के लिए
जग किया करता सदा मनुहार ही
अहा ! कितनी सुंदर पंक्तियां हैं ! प्रेम में हार को भी जीत की तरह ग्रहण करने का कवि का भाव निःसंदेह एक उपासना के धरातल पर काव्य को प्रतिष्ठित कर रहा है ।
सामाजिक चेतना का स्वर
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केवल ऐसा नहीं है कि कवि स्वर्गीय श्री कैलाश चंद्र अग्रवाल एक हताश और निराश प्रेमी हैं तथा वह केवल वियोग की पीड़ा में ही विचरण कर रहे हों। सच तो यह है कि कवि को अपने कर्तव्यों का बोध है । समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास है । वह यह जानता है कि जीवन का सर्वोच्च ध्येय समाज के प्रति अपने को समर्पित करने में ही है । लोकसेवा को जीवन का परम लक्ष्य स्वीकार करते हुए कवि ने एक सुंदर गीत लिखा है, जिसे वास्तव में तो हर मंच से गाया जाना चाहिए। गीत इस प्रकार है :-
स्वार्थ से परिपूर्ण इस संसार में
पर-हितों का ध्यान कब आता किसे ?
दूर तक छाया दुखों का तम घना
रंच भर भी क्षुब्ध कर पाता किसे ?
लोकसेवा से जुड़ा संकल्प ही
आदमी का वास्तविक गंतव्य है
चेतना का बोध है केवल उसे
भूलता अपना न जो कर्तव्य है
मुरादाबाद मंडल और जनपद के ही नहीं अपितु समूची मानवता के लिए जिन श्रेष्ठ गीतों को रचकर स्वर्गीय कैलाश चंद्र अग्रवाल ने इस धरती से प्रस्थान किया है ,वह गीत देह के न रहने पर भी उनके उदात्त जीवन तथा महान आदर्शों के लिए हमें उनके स्मरण हेतु प्रेरित करते रहेंगे। स्वर्गीय कैलाश चंद्र अग्रवाल की पावन स्मृति को शत-शत प्रणाम ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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