स्वयं से परीक्षा
अपने संग ही दौड़, अपने में तलाश,
हर एक है अनूठा, क्यों करे आपा-धापी।
माना कि स्कूल, कॉलेज या कार्यस्थल पर,
हर कोई करता है दूजों से तुलना, अपनी उपलब्धियों की भागदौड़ में।
जीवन की यह रेस, किसी और से नहीं,
खुद से है ये जंग, तुम खुद हो अपने संग।
क्या तुम बढ़े? क्या तुमने वो किया जो था आज करना?
सफल वही, जो आज है बेहतर कल से, अपनी ही दृष्टि में।
पिकासो ने बचपन में माँ से पूछा था,
क्या बनूं मैं? सिपाही या पादरी, उसने सोचा था।
ना सिपाही बनना, ना पादरी,
पिकासो बनना था, तो पिकासो बन गया।
रुको ना बनने की कोशिश में औरों जैसे,
हर कोई अनोखा, हर कोई खास है।
अपना सबसे अच्छा संस्करण बनो,
अपनी खुद की राह पर, अनवरत चलते चलो।