स्वयं से आज मिलने जा रहा हूँ
खयालों में जिसे बुनता रहा हूँ
हुआ जब सामना घबरा रहा हूँ
गली में प्रेम की मुश्किल बहुत है
दिल-ए-नादान को समझा रहा हूँ
अलग है प्यार की खुशबू सभी से
उसे बो कर चमन महका रहा हूँ
भले आये न आये वह मेरे घर
मगर मैं कोशिशें करता रहा हूँ
सभी से मिल चुका जी भर जहाँ में
स्वयं से आज मिलने जा रहा हूँ