स्वयं संगीता
मजबूर हर शख्स समझ में मुझे अब आने लगा है,
मजबूर मैं हूँ अब ,
इसलिए पग-पग पर हर कोई मुझे आज़माने लगा है ।
सच है मेरा ऐसा झूठ वो सबको लगता है ,
और झूठ कहूँ कैसे??
झूठ कहने से गुरूर में घाव लगता है ।
जिंदगी है दो पल की यारा ,
एक फसी हकीकत में,
एक ख्वाबों में बसी है ,
ख्वाबों को हकीकत बनाना है,
और अपनी पसंद का महज़ एक घर बनाना है ।
एक वक्त था जब मशवरा लोग देते थे मुझे,
आईना देख लेना चाहिए मुझे ,
सीधा साफ वो अक्सर ये कहते थे मुझे,
खुदके किरदार को देख लेना चाहिए मुझे,
अब जब देखा है आईना मैने,
खुदको मैं मासूम नजर आती हूँ ,
हद से ज़्यादा नजाने क्यों मैं घबराती हूँ ,
मैं महज़ बेहतर हू , बेहतरीन नहीं,
अक्सर लोगो को समझाती हूँ ,
नजाने क्यों उनको ही मैं ज़्यादा उम्दा नजर आती हूँ।
जी कर देखा दूसरो के हिसाब से ,
खुदके हिसाब से भी साँसे ली है ,
मगर नजाने क्यों हर साँस में रोकधाम लगी है।
अंत में अंत पसंद है मुझे, अनंत से ज्यादा
चुप रहना बेहतर लगता है मुझे ,
बेमतलब के शोर से ज्यादा ,
क्युकी है मानना मेरा यह ,
क्यों समझाना उन्हे ,
जिनको कठिन है कोई भी बात समझाना ,
समझना होगा , तो वो खुद समझेंगे तुम्हे ,
ना समझे तो तुम्ही समझलो
बेहतर है नसमझो से दूरी बनाना।।
❤️ सखी