स्वयं को प्रभु के करें हवाले
अहंकार को त्याग स्वयं को, प्रभु के करें हवाले।
बिना लगाए भोग ईश को, ग्रहण न करें निवाले।।
पकड़ें शरण इष्ट की अपने, सारी चिन्ता त्यागें।
भूल-चूक के लिए हृदय से, प्रतिदिन माफी मांगें।।
करें याचना भवसागर से, वह ही हमें निकाले।
बिना लगाए भोग ईश को, ग्रहण न करें निवाले।।
करें अध्ययन धर्मशास्त्र का, गुरु की आज्ञा मानें।
अपने दुर्गुण स्वयं दूर कर, अपने को पहचानें।।
फैलाते सद्ग्रंथ लोक में, अविरल नए उजाले।
बिना लगाए भोग ईश को, ग्रहण न करें निवाले।।
लोभ-मोह अरु काम-क्रोध को, निज यत्नों से जीतें।
शतश: करें समर्पित खुद को, तब सुख से दिन बीतें।।
बिना ईश की अनुकम्पा के, खुलें न हिय के ताले।
बिना लगाए भोग ईश को, ग्रहण न करें निवाले।।
परमेश्वर माया का अधिपति, योगेश्वर कहलाता।
वह अव्यक्त मगर अन्तस में, योगी दर्शन पाता।।
जो चाहे वह योग लगाकर, उसे यत्न से पा ले।
बिना लगाए भोग ईश को, ग्रहण न करें निवाले।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी