Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Jan 2021 · 2 min read

स्वयं को पहचानने का जतन !

समय-समय की बात है,
मैं उलझ गया था अपने आप में,
कुछ घटनाचक्र ही ऐसा रहा,
मैं घर से बाहर नहीं निकल सका,
सामान्य प्रक्रिया तो चलती रही,………………… लेकिन
अपने मुख मंडल पर घ्यान गया नहीं,
नहीं जा पाया मैं दर्पण के सम्मुख,
देख ना पाया था अपना ही मुख!

मुझे अपने बालों को बनवाने का अहसास हुआ,
दाडी और मुछ को संवारने पर विचार किया,
अब चल पड़ा मैं उसके द्वार,
जो रखता है इसका सरोकार,
अपने क्रम आने पर,,मैंने उसे समझाया,
और बैठ गया उसके आगे, जहां उसने बतलाया,
उसने अपनी प्रक्रिया आरम्भ कर दी,
बालों की कटिंग के साथ,दाडी मुछ भी साफ कर दी!

शेष बचे बालों को वह सहलाते हुए ,सिर पर देने लगा थपकी,
उसके इस संयोजन में, मुझे आ गई झपकी,
उसने अपना काम पूरा किया,
मुझे उंगता देखकर झकझोर दिया,
मेरी तन्द्रा टूट रही थी,
दर्पण पर सामने एक तस्वीर उभर रही थी, में
मैंने नज़र भर उसको देखा,
पड गया उलझन में, इसे पहले कहां देखा,
मैं फिर आइने की ओर देखने को हुआ,
तभी बारबर ने मुझसे कहा,
अंकल जी आपका हो गया,
अब दूसरे की बारी है,
मैं आइने को घूर रहा था यह तस्वीर तो हमारी है!

अपने को ही पहचानने में मैं चूक गया कैसे,
क्या मैं अपने को जान नहीं पाया हूं ऐसे,
कौन हूं मैं, मैं क्या हूं, किस लिए यहां पर आया हूं,
मैं भूल गया हूं अपने को, या….
किस लिए यहां पर भेजा गया हूं,
मैं अब यह जानने का प्रयत्न कर रहा हूं,
स्वयं को पहचानने का जतन कर रहा हूं।

Language: Hindi
1 Like · 4 Comments · 612 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Jaikrishan Uniyal
View all
You may also like:
कोई कमी जब होती है इंसान में...
कोई कमी जब होती है इंसान में...
Ajit Kumar "Karn"
परछाईयों की भी कद्र करता हूँ
परछाईयों की भी कद्र करता हूँ
VINOD CHAUHAN
निष्काम,निर्भाव,निष्क्रिय मौन का जो सिरजन है,
निष्काम,निर्भाव,निष्क्रिय मौन का जो सिरजन है,
ओसमणी साहू 'ओश'
सूर्य अराधना और षष्ठी छठ पर्व के समापन पर प्रकृति रानी यह सं
सूर्य अराधना और षष्ठी छठ पर्व के समापन पर प्रकृति रानी यह सं
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
माँ का द्वार
माँ का द्वार
रुपेश कुमार
दिनकर तुम शांत हो
दिनकर तुम शांत हो
भरत कुमार सोलंकी
24/494.💐 *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका* 💐
24/494.💐 *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
बिगड़े हुए मुकद्दर पर मुकदमा चलवा दो...
बिगड़े हुए मुकद्दर पर मुकदमा चलवा दो...
Niharika Verma
भावनाओं की किसे पड़ी है
भावनाओं की किसे पड़ी है
Vaishaligoel
"खूबसूरत आंखें आत्माओं के अंधेरों को रोक देती हैं"
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
दिल तुझे
दिल तुझे
Dr fauzia Naseem shad
गंगा अवतरण
गंगा अवतरण
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
सुनाऊँ प्यार की सरग़म सुनो तो चैन आ जाए
सुनाऊँ प्यार की सरग़म सुनो तो चैन आ जाए
आर.एस. 'प्रीतम'
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Neelofar Khan
आधार छन्द-
आधार छन्द- "सीता" (मापनीयुक्त वर्णिक) वर्णिक मापनी- गालगागा गालगागा गालगागा गालगा (15 वर्ण) पिंगल सूत्र- र त म य र
Neelam Sharma
तुम्हे तो अभी घर का रिवाज भी तो निभाना है
तुम्हे तो अभी घर का रिवाज भी तो निभाना है
शेखर सिंह
#मंगलकामनाएं
#मंगलकामनाएं
*प्रणय*
कुपमंडुक
कुपमंडुक
Rajeev Dutta
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
संघर्ष
संघर्ष
Shyam Sundar Subramanian
“दीपावली की शुभकामना”
“दीपावली की शुभकामना”
DrLakshman Jha Parimal
भक्ति गीत (तुम ही मेरे पिता हो)
भक्ति गीत (तुम ही मेरे पिता हो)
Arghyadeep Chakraborty
ऐसे जीना जिंदगी,
ऐसे जीना जिंदगी,
sushil sarna
लालच
लालच
Dr. Kishan tandon kranti
वो जो हूबहू मेरा अक्स है
वो जो हूबहू मेरा अक्स है
Shweta Soni
आज का युद्ध, ख़ुद के ही विरुद्ध है
आज का युद्ध, ख़ुद के ही विरुद्ध है
Sonam Puneet Dubey
गुरु का महत्व
गुरु का महत्व
Indu Singh
गणपति वंदना (कैसे तेरा करूँ विसर्जन)
गणपति वंदना (कैसे तेरा करूँ विसर्जन)
Dr Archana Gupta
Poem
Poem
Prithwiraj kamila
रतन महान , एक श्रद्धांजलि
रतन महान , एक श्रद्धांजलि
मधुसूदन गौतम
Loading...