स्वयं को पहचानने का जतन !
समय-समय की बात है,
मैं उलझ गया था अपने आप में,
कुछ घटनाचक्र ही ऐसा रहा,
मैं घर से बाहर नहीं निकल सका,
सामान्य प्रक्रिया तो चलती रही,………………… लेकिन
अपने मुख मंडल पर घ्यान गया नहीं,
नहीं जा पाया मैं दर्पण के सम्मुख,
देख ना पाया था अपना ही मुख!
मुझे अपने बालों को बनवाने का अहसास हुआ,
दाडी और मुछ को संवारने पर विचार किया,
अब चल पड़ा मैं उसके द्वार,
जो रखता है इसका सरोकार,
अपने क्रम आने पर,,मैंने उसे समझाया,
और बैठ गया उसके आगे, जहां उसने बतलाया,
उसने अपनी प्रक्रिया आरम्भ कर दी,
बालों की कटिंग के साथ,दाडी मुछ भी साफ कर दी!
शेष बचे बालों को वह सहलाते हुए ,सिर पर देने लगा थपकी,
उसके इस संयोजन में, मुझे आ गई झपकी,
उसने अपना काम पूरा किया,
मुझे उंगता देखकर झकझोर दिया,
मेरी तन्द्रा टूट रही थी,
दर्पण पर सामने एक तस्वीर उभर रही थी, में
मैंने नज़र भर उसको देखा,
पड गया उलझन में, इसे पहले कहां देखा,
मैं फिर आइने की ओर देखने को हुआ,
तभी बारबर ने मुझसे कहा,
अंकल जी आपका हो गया,
अब दूसरे की बारी है,
मैं आइने को घूर रहा था यह तस्वीर तो हमारी है!
अपने को ही पहचानने में मैं चूक गया कैसे,
क्या मैं अपने को जान नहीं पाया हूं ऐसे,
कौन हूं मैं, मैं क्या हूं, किस लिए यहां पर आया हूं,
मैं भूल गया हूं अपने को, या….
किस लिए यहां पर भेजा गया हूं,
मैं अब यह जानने का प्रयत्न कर रहा हूं,
स्वयं को पहचानने का जतन कर रहा हूं।