स्वयं के स्वभाव को स्वीकार और रूपांतरण कैसे करें। रविकेश झा।
राजनीति का कोई धर्म नहीं, अगर धार्मिक है फिर वो राजनीतिक व्यक्ति नहीं हो सकता है, जिस तरफ बढ़ रहा नदी उस तरफ बढ़ लिए कभी जान बूझ के मूर्छा हो लिए, कभी लड़ाई कभी घृणा कभी क्रोध के तरफ, क्योंकि कुछ बनना है,
जब तक बनना है तब तक हम अछूत रहेंगे सत्य से यहां बनने के लिए दो की आवश्कता होता है लेकिन जब आंतरिक खोज हो जाता है ध्यानी कहते हैं यहां एक है एक में ही सब छुपा हुआ है जैसे की आकाश जैसे की आत्मा, लेकिन हम स्वयं को और सामने वाले को दो समझ रहे हैं। हमें पता ही नहीं चलता कि हम कैसे खोज करें।
हम पुस्तक पढ़ लेते हैं और कुछ अपना जोड़ देते हैं जैसे की वो अधूरा ही बोल दिए, क्यों क्योंकि हमें भी नाम चाहिए हमें भी पद चाहिए ताकि लोग हमें लाइक करें अनलाइक न करें जिस तरफ लोग चल रहे हैं हम भी क्यों ना चले। यही सब बात से हम आगे नहीं बढ़ पाते और हम जटिल होते जाते हैं। क्योंकि हम बस कचरा भरने में लगे हुए हैं, हमें सत्य का कोई पता नहीं कोई दर्शन नहीं, बस भजन कर रहे हैं हाथ जोड़कर ताकि प्रभु क्षमा करें क्योंकि वो देख रहे हैं वाह क्या करुणा करते हैं हम, हमें न करुणा का पता चलता है और न कामना का क्योंकि हम सब भविष्य में उलझे हुए हैं।
हमें जागना होगा ताकि हम ऊपर उठ सके और शांति के तरफ बढ़े इतना धर्म है सब शांति की बात करते हैं लेकिन कितने शांति के तरफ बढ़ रहे हैं। लेकिन क्रोध घृणा तो रह ही जाता है क्योंकि हमारा कामना हमारा साथ नहीं छोड़ता ,जब तक जीवन है तब तक हम लड़ते रहेंगे सत्य का पता नहीं चलेगा, सत्य का तो पता जागरूकता और ध्यान से होगा।
लेकिन उसके लिए हमें जागना होगा भीर से अलग होना होगा। ताकि हम उठ सके, घृणा क्रोध को प्रेम करुणा में रूपांतरण कर सके तो अच्छा होता, रहा दूसरा का बात की कोई हमें परेशान करें तो क्या करे सहे या लड़े, दोनो संभावना आपके अंदर ही है लेकिन लड़ना यानी कामना छोड़ना यानी करुणा सहना बिना दुख के वो आत्मिक इसको समझना होगा। अगर कोई क्रोध कर रहा है वो स्वयं को तबाह कर रहा है मनोवैज्ञानिक कहते हैं जब हम क्रोध करते हैं तब हम स्वयं को जलाते हैं ऊर्जा नष्ट करते हैं बीमारी बढ़ाते हैं स्वयं को तबाह करते हैं वो तबाह कर ही रहे हैं स्वयं को फिर आप अलग से क्या क्रोध करिएगा सोचिए, क्रोध करुणा दोनों संभावना आपके अंदर है, फिर हम क्रोध के राह पर क्यों चलें क्यों जलते रहे क्यों स्वयं को तबाह करते रहे।
हमें जागना होगा तभी हम स्वयं का रूपांतरण करना होगा, बदलना नहीं है रूपांतरण करना होगा। बदलने से आप एक को छोड़ दोगे यानी त्याग त्यागना नहीं है जागना है दोनों के परे जाना है दोनों को जानना होगा। तभी हम खिल सकते हैं और दूसरे को भी जागने में मदद कर सकते हैं। और फिर चारों तरफ प्रेम और शांति रहेगा, शिक्षा ध्यान प्रेम जागरूकता यह सब जीवन का मूल मंत्र होना चाहिए। तभी हम विकसित होंगे और लोगों को भी हम प्रेरित कर सकते हैं। हमें स्वयं को स्वीकार करना होगा जो भी हम है जैसे अभी जिस हाल में जी रहे हैं स्वयं को बस स्वीकार करें।
और लोग स्वयं को रूपांतरण कर सकते हैं।
आंख खोल के रखना जागना नहीं हुआ, चेतना वर्तमान में है, आप आंख तो खोलते हैं लेकिन अतीत और भविष्य के लिए, वर्तमान यानी पल पल होश किसी को पता नहीं, बस ये होना चाहिए वो होना चाहिए। कौन बोल रहा है ऐसे करने को ये सोचा कभी,
कामना कैसे उत्पन्न होता है कभी सोचते हैं नहीं, बस मूर्छा दूसरे को परेशान करना, घृणा क्रोध लोभ ये कहां से आता है। ये सब पर ऊर्जा का उपयोग किए हैं? नहीं, हमें पता ही नही चलता की हम कैसे स्वयं को पहचाने कैसे प्रेम और आनंद के तरफ बढ़े। कैसे हम कुछ कर लेते हैं कैसे हम गाली क्रोध वासना से भर जाते हैं। बहुत कहते हैं परमात्मा करवाते हैं कृष्ण जी बोले भी है गीता में सब मेरे द्वारा होता है सब में मैं हूं। फिर छोर दो उनपर जो होगा देखा जायेगा , लेकिन नहीं हमें बुद्धि का उपयोग करना है धन नाम पद प्रतिष्ठा कमान है, ये कमाने वाला कौन है।
बहुत कहते हैं पापी आत्मा करवाता है कुछ से कुछ बोलना जरूरी है, पता कुछ नहीं लेकिन ज्ञान देंगे। हम बस कॉपी करने में लगे रहते हैं भेष का धन का पद का प्रतिष्ठा का, और क्रोध लोभ भय का भी, उसको हुआ है तो मुझे भी होना चाहिए। ये सब बात कहां से आता है कोई नहीं सोचता। बस मूर्छा में जीना हमें पसंद आता है। आना भी चाहिए क्योंकि कुछ और अलग हो तब न हम खोजेंगे लेकिन हमें अंदर से रोका जाता है। ये न करो इसमें स्कोप नहीं है इसमें धन अच्छा है इसमें पद अच्छा है बेहतर है। बस हम इसी सब में फंस जाते हैं। और सार्थक निर्णय नहीं कर पाते साहब, हमें जागना होगा। ताकि हम ऊपर उठ सकते ऊर्जा को जान सके ऊर्जा का रूपांतरण चेतना में करें।
रूपांतरण होगा जागने से ध्यान से जागरूकता से तभी हम अपने स्वभाव को समझ सकते हैं मन के सभी भाग को जान सकते हैं। तभी हम पूर्णतः सहमत और निरंतर आनंदित महसूस करेंगे।
चलिए एक कदम रूपांतरण के ओर बढ़ते हैं।
जागरूकता लाना होगा।
मैं यह नहीं कहता की मुझ पर भरोसा या विश्वास श्रद्धा करे आप स्वयं जाने स्वयं खोज करें आपको स्वयं चलना होगा। कोई भी आपको बस सलाह दे सकता है चलना तो आपको ही होगा साहब। कोई प्रश्न या सुझाव आप कॉमेंट के माध्यम से देने की कष्ट करें। दमन नहीं करना है भय नहीं करना है। जो ये सब सोच रहे हैं की भय का क्या करें वो मेरे पुराना पोस्ट प्रेम और भय क्या है वो पढ़ सकते हैं।
धन्यवाद।
रविकेश झा।🙏❤️