स्वयं के प्रति सत्यनिष्ठ रहना
स्वयं के प्रति सत्यनिष्ठ रहना
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संसार में अनेक स्वभाव के इंसान अपने अपने सामाजिक जीवन में ब्यस्त है । इनमे से कुछ इंसान अपने जीवन को ऐसे व्यतीत कर रहे है जैसे की वो झूठ के सहारे जी रहे और कुछ अभी सच्चाई पर जी रहे है। संसार में बढ़ते भष्टाचार से सच ऐसे छिप रहा है जैसे की जल में नमक घोल दिया हो। संसार में अगर कुछ बचा है तो सिर्फ झूठ , भष्टाचार है । हम लोग एक सच एक बजह से 100 झूठ बोल जाते है ।
हम एक तालाब और नदी को लेकर चलते है दोनों ही जल के स्त्रोत है। अगर हम तालाव को झूठ और नदी को सच नाम दे कर चले तो उदाहरण स्पष्ट होगा। तालाब का जल स्थिर होने के कारण गन्दा होता है उसी प्रकार झूठ बोलने बाले व्यक्ति की आत्मा , मन में गंदगी बैठ जाती है और वो हमेशा उसी जगह रहते आगे बढ़ ही नही पाते। उसी प्रकार नदी को देखे तो साफ़ जल रहता है हमेशा निरंतर चलता रहता है , बड़ी बड़ी चट्टानों को तोड़ कर अपना रास्ता बना लेती है। उसी प्रकार सच्चा व्यक्ति का मन , आत्मा साफ होती है और आगे बढ़ता रहता है कुछ कठिनाई के साथ मगर रास्ता अवश्य बना लेता है।
अगर हम लोग चाहे तो तालाब को भी साफ़ कर सकते है व्यक्ति के मन को साफ़ कर सकते है । अगर हम लोग तालाब को नदी से जोड़ दे तो तालाब भी नदी की और बढ़ने लगेगा ।उसी प्रकार हमे झूठे इंसान को सच्चे इंसान के गुणों , उनकी आदतों से मिलाना पड़ेगा , जिससे झूठे व्यक्ति के अंदर का मैल साफ़ हो जाये।
★★★सत्य के साथ जीने में ही संतुष्टि मिलती है★★★
जिसके जीवन में सत्य है । वह महान बन जाता है । सत्य भगवान का प्रथम गुण है । इसके धारण से इंसान समाज में आदर पाता है।
जिसके ह्रदय में सत्य उसके ह्रदय में व्रह्मा , विष्णु , महेश वास करते है । और जहा झूठ है वहाँ दानवो का निवास है । जिस प्रकार वृक्ष अपने फल और फूल से पहचाना जाता है वैसे ही इंसान सत्यवादी इंसान अपने व्यवहार और कार्य से पहचाना जाता है।
संसार में सत्य से बढ़कर कोई धर्म नही, सत्य से बढ़कर को श्रेष्ठ ज्ञान नही। सत्यवादी इंसान कभी हानि नही उठाता मगर थोड़ा सा कष्ट सहना पड़ता है परंतु अंत में जीत ही जाता है।
झूठ बोलने बाला एक झूठ छिपाने के लिए हजार झूठ बोलता है झूठ की एक जंजीर बना लेता है औए झूठ की जंजीर मजबूत नही होती कही न कही जंग लग ही जायेगी और टूट जायेगी और फिर आप दूसरों का विश्वाश खो देते है और बाद में बहुत कष्ट होता है।
स्वयं में वी कभी कभी झूठ बोल जाती हूं । मगर उस वक्त तो शायद में बच जाऊ पर बाद में हमे ये लगता है कि ये गलती ही नही पाप है। दिल में डर बैठ जाता है कि कहि में पकड़ी न जाऊ और अपनो का विस्वास न खो दू । माना कि कभी झूठ बोलना पड़े अगर जरुरी हो तो बोल दो मगर बाद में सब ठीक हों जाने के बाद सबको सच बात देना चाहिए । क्योंकि सच कभी छुपता नही अगर किसी दूसरे से सच पता चलेगा तो हम एक प्यार भरा संसार और विश्वास खो देते है और खुद की भी नजरो से गिर जाते है । झूठ बोलना तो पाप है मगर उसे छुपाना उससे बड़ा पाप है ।
इसीलिए दोस्तों कभी पाप न होने दे कभी दुसरो की नजरों से खुद को न गिरने दे ।
हमारे समाज के लोगो आपको चुनना है सत्य और झूठ में कोई एक , सत्य में थोड़ा कष्ट होता है मगर बाद में खुसी मिलती है। कहने का मतलब है की थोड़े से कष्ट में जिंदगी भर की ख़ुशी मिलती है ।
वही दूसरी तरफ झूठ में पहले थोड़ा मज़ा लो बाद में सजा लो। थोड़ी सी ख़ुशी और जिंदगी भर कष्ट और दूसरों के ताने सुनो।
— दो खाने की थाली रखी है जिसमे भोजन है। पहली थाली में भोजन पहले थोड़ा कड़वा लगेगा बाद में मिठास होगी ( सत्य ) , और दूसरी थाली में भोजन पहले मीठा बाद में कड़वा लगेगा ( झूठ )।
तो दोस्तों तय आपको करना है पहले कड़वा खा कर मीठा खाना चाहते हो या मीठे से कड़वा । अगर कड़वे से मीठा खाओगे तो पूरे दिन मुँह में मीठा रहेगा और मीठे से कड़वा खाओगे तो पूरे दिन मुह कड़वा लगेगा ।
सत्य ही जीवन है।