“स्वप्न”………
“स्वप्न”………
अँधेरी पगडंडियो में ,
मैं चलना सीखता हूँ ।
राहें सजानें के लिए ,
तारों को तोड़ता हूँ ।
मस्ती सूझती है तो ,
चाँद को छेड़ता हूँ ।
जुगनुएँ हथेली मे लेकर ,
रोशनी की चादर ओढ़ता हूँ ।
फूलों के बागान में ,
तितलियों के रंग चुराता हूँ ।
भौरों की टोली के संग ,
बैठकर मैं गीत गाता हूँ ।
इतने इक आवाज आती है ,
और स्वप्न से मैं जाग जाता हूँ ।।
✍️कैलाश सिंह