स्वप्न व यथार्थ
निकट से यह जीवन
यथार्थ ही लक्षित है,
परे यह बस स्वप्न ही
सर्वदा परिलक्षित है।
भ्रम जैसे क्षितिज के
ऊपर आकाश का है,
आकाश के ऊपर भी
बस एक प्रकाश का है।
सागर की भांति आकाश ने
भी ब्लेक होल बना लिया,
जिसने न जाने कितने
तारों को निगल लिया।
कभी सोचते हम बस
अपनी पृथ्वी पर उलझे,
अभी भी न जाने कितने
ग्रहों के राज नही सुलझे।
हमको अपने आकाश
गंगा की ही खबर नहीं
अनंत आकाशगंगाओं
को साधना क्या है सही?
ब्रह्मांडो की कल्पना
भ्रम नही हकीकत है
सुलझाओ जितना ही
उतना ही उलझता है।
निर्मेष इतनी उलझनों
के साथ जीना जीवन है
स्वप्न व यथार्थ के मध्य
भी जीवन एक उपवन है।
निर्मेष