स्वप्न न बेचे…
रोटी की खातिर सबकुछ, बेचा लेकिन, स्वप्न न बेचे।
हमनें चौराहों पर रखकर काले जामुन केले बेचे।
चीकू सेब संतरे लीची नीबू आम करेले बेचे।।
सब्जी बेची लेकिन अपने मन में उठते प्रश्न न बेचे।।
बच्चों की खातिर अपना मरना बेचा जीना बेचा।
मजबूरी के हालातों में निशदिन खून पसीना बेचा।
हँसी लबों की बेची लेकिन त्यौहारों के जश्न न बेचे।
बीमारी के कारण धरती बेची अपने घर को बेचा।
अपनी नींदें बेचीं हमनें हिम्मत बेची डर को बेचा।
अपने तन को बेच दिया पर मन के राधे कृष्न न बेचे।।
प्रदीप कुमार