स्वप्न और वास्तव: आदतों, अनुशासन और मानसिकता का खेल
स्वप्न और वास्तव: आदतों, अनुशासन और मानसिकता का खेल
कहां होना चाहूं, कहां हूं खड़ा,ये अंतर है आदतों का बना.अनुशासन की डोर से बंधा,मानसिकता का सूरज है चमका.
सपनों की उड़ान भरना चाहता हूं,आकाश छूना मेरा लक्ष्य है.पर पैरों में जंजीरें बंधी हैं,कामों का बोझ है मेरे सिर पे.
आदतों की बदली हवा लाऊंगा,अनुशासन का रास्ता अपनाऊंगा.नकारात्मक विचारों को भगाऊंगा,सकारात्मकता का दीप जलाऊंगा.
छोटी-छोटी शुरुआत करूंगा,हर दिन एक कदम बढ़ाऊंगा.लक्ष्य की ओर दृढ़ता से चलूंगा,हार नहीं मानूंगा, हार नहीं मानूंगा.
विश्वास है अपना अटूट,सफलता जरूर मिलेगी मुझे.कहां होना चाहता था, वहां पहुंचूंगा,खुशियों का गीत गाऊंगा.
यह कविता है प्रेरणा की,आपके लिए, मेरे लिए, सबके लिए.आइए मिलकर प्रयास करें,स्वप्नों को सच कर दिखाएं.