स्वदेशी लोग
स्वदेशी लोग
उदासीन जीवन को ले
क्या-क्या करते होंगे वे लोग
न जाने किन-किन स्वप्नों को छोड़
कितने बिलखते होंगो वे लोग।
कितने संघर्ष गाथाओं में,
अपनी एक गाथा जोड़ते होंगे वे लोग
पर भी, असहाय होकर
कैसे-कैसे भटकते होंगो वे लोग।
कुछ बाधाओं से जूझते परास्त नहीं
कैसे होते होंगे वे लोग;
जीवन को दाँव लगा राष्ट्र हित में,
मिटने वाले कौन होते होंगे वे लोग।
गरीबी में तन मन को बढ़ा
उच्चाकांक्षाओं को छूते होंगे वे लोग
उत्कृष्ट ‘आलोक’ को विश्व पटल पर ला
गौरवशाली कौन होते होंगे वे लोग।
जीवन व्रत में निरत, दृढ़
कैसे आक्रांताओं को तोड़ते होंगे वे लोग
त्याग तन, स्वदेश का मस्तक बढ़ा
ये स्वदेशी कौन होते होंगे वे लोग। ©
राष्ट्र कवि पं आलोक पान्डेय