स्वदेशी के नाम पर
स्वदेशी के नाम पर कभी
जो बजाया करते थे गाल
आज सत्ता सुख भोगने को
दिनभर मचलते हैं बेहाल
कहां गए उनके नारे और
कहां गायब हुआ वो जोश
अब सत्ता की महक से उनके
सब नेता पड़े हैं कहीं मदहोश
सत्ता में अपने संगियों के आने से
पहले करते रहे राष्ट्रप्रेम की बात
सत्ता का सान्निध्य पाकर कहीं
गुम हो गए उनके दिल के जज्बात
बस जुगाड़़ की खोज में इत ऊत
लोगों को देते रहते त्याग की सीख
खुद के लिए चाहते सजे मंच पर
बस सबके बीच वाली हाट सीट
अब ऐसे में भला कौन करेगा
इन ढोंगियों पर कभी विश्वास
जब उनकी करनी और कथनी
में नहीं मिलता स्वदेशी का प्रकाश
स्वदेशी के नाम पर अब तक देश
में कहीं चले जितने भी अभियान
उनके नेता चोला बदल सजाते रहे
अपने घर और बंगले आलीशान
जनता जज़्बातों में बहकर लुटाती
है ऊर्जा, धन और समय बेहिसाब
देखते ही देखते स्वदेशी के पैरोकार
बन जाते हैं आम समाज के नवाब