Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Jul 2022 · 5 min read

स्वतंत्रता संग्राम में महिलायें

स्वाधीनता संग्राम और महिला सेनानी
लेख– मनोरमा जैन पाखी
मेहगाँव ,जिला भिण्ड, मध्यप्रदेश

राष्ट्रीय स्वाधीनता की आग ऐसी थी जिसने हर दिल में जोश भड़का दिया था। जाति-पाँति,ऊँच -नीच,अमीर-गरीब,स्त्री-पुरुष, बच्चे-वृद्ध सभी की नसों में रक्त संचार नहीं अपितु संग्राम और आजादी दौड़ रही थी।
इतिहास गवाह है कि समाज का हर अंग जब एक विचार ,एक राह चलने लगता है तब परिणाम अद्भुत ही होता है।
राष्ट्रीय स्वाधीनता की लड़ाई में जैन आम्नाय के स्त्री पुरूषों ने ही नहीं अपितु पाँच से 12-13साल तक के बच्चों ने भी आहूति दी थी। अमृत बॉठियाँ के नन्हें बालक को उनकी आँखों के सामने ही हवेली के आगेखड़े वृक्ष से जिंदा लटका कर फाँसी दे दी थी। लेकिन इतिहास के गर्त में छिपा अतीत ,राख में दब गया।
ऐसा ही कुछ महिलाओं के बारे में हुआ ।लक्ष्मी बाई ,झलकारी बाई ,अहिल्याबाई, चेनम्मा जैसी सिंहनियों का नाम आज याद है । मैं उन सिंहनियों के योगदान को याद करना चाहती हूँ जो किसी कारण से गुमनाम रह गयीं।
ऊदादेवी-एक क्रांतिकारी बहादुर लखनवी महिला। इनके पति चिह्नहट की लड़ाई में स्मृतिशेष हुये ।तत्पश्चात जब सिकंदराबाद किले (लखनऊ) पर अँग्रेजों ने आक्रमण किया तब इस वीरांगना का रक्त खौल गया। अँग्रेजी सेना के दो हजार सैनिकों के आगे ऊदा अकेली थी। तब उसने पीपल के घने वृक्ष का सहारा लेकर छिपते हुये बत्तीस अंग्रेज सिपाही मार गिराये। अंग्रेजों को आश्चर्य हुआ।वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि बार कहाँ से हो रहा है?अंग्रेज केप्टन ने वृक्ष पर हलचल देखी तो निशाना साध कर गोली चला दी। पेड़ से एक मानव आकृति नीचे गिरी। गिरते वक्त उस आकृति के जैकेट का ऊपरी भाग खुल जाने से लंबे बाल लहराने लगे।जिससे ज्ञात हो गया कि वह स्त्री है।इस वीरांगना का शव देख कैप्टन वैल्स संवेदना से भर उठा।और ऊदा के लिए सम्मान जनक शब्द निकले,” अगर पता होता कि यह महिला है तो कभी गोली नहीं चलाता।”
मात्र बत्तीस सैनिक मारे इससे उसका योगदान कम नहीं हो जाता।अपितु पति की मौत के बाद उसने बजाय रोने धोने बिसूरने के एक यौद्धा का मार्ग अख्तियार किया। नमन है ऊदा जैसी वीरांगना को।
रानी राजेश्वरी गौंडा से 40कि.मी.दूर तुलसीपुर रियासत की रानी थी।अवध के मुक्ति संग्राम में प्रमुखता से भाग लेकर दुश्मन को सोचने पर मजबूर कर दिया।इन्होंने होपग्रांट के सैनिक दस्ते का बहादुरी से मुकाबला किया था।
लखनऊ की एक और महिला रहीमी (जो बेगम हजरत महल की महिला सैन्य दल का नेतृत्व करती थी) हथियार चलाने में गज़ब की कुशल थी। तोप ,बंदूक चलाना बायें हाथ का खेल था उसके लिए।वह महिला सैनिकों को भी यह चलाने म़े प्रशिक्षित करती थी।फौजी वेश में रहने वाली रहीमी के नेतृत्व में महिला सैनिकों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये। उसकी बहादुरी से प्रभावित हो बहुत सि सामान्य महिलायें भी सैनिक के रुप में भर्ती हो प्रशिक्षित हुईं। इनमें से एक थी तवायफ हैदरीबाई । जिसके यहाँ अँग्रेज अधिकारी आते जाते थे। भारतीय क्रांतिकारियों के विरुद्व योजनाएं भी वहीं बनाते। देश के प्रति जज्बा किसी क्षत्रिय या उच्च श्रेणी की बपौती नहीं थी। हैदरीबाई भी देश भक्त थी। अंग्रेजों की समस्त योजनाओं की जानकारी वह क्रांतिकारियों को पहुँचा देती थी।बाद में वह भी रहीमी के दल में शामिल होकर संग्राम में शामिल हुई।
ऐसी ही एक और वीरांगना लज्जो का नाम मिलता है ।
अंग्रेज अफसरों के यहाँ घरेलु काम करने वाली लज्जो किसी भी क्रांतिकारी से कम नहीं थी। अगर कहें कि आजादी की लड़ाई का सूत्रपात करने वाली लज्जो ही थी। अंग्रेज जानते थे कि भारतीय माँसाहार नहीं करते ।उसमें भी गाय उनके.लिए पूज्य है तब उन्होंने कारतूसों.में गाय की चर्बी उपयोग करने का प्लान बनाया। उस अंग्रेज अफसर के यहाँ से जैसे ही लज्जो को यह बात पता लगी उसने भारतीयों में यह जानकारी प्रसारित कर दी। यहीं से 1857 के गदर की शुरुआत हुई थी। अंग्रेजों को पता लगा तो लज्जो को गिरफ्तार कर लिया गया। यही वह समय था जब मेरठ की औरतों ने वहीं के सिपाहियों.को.एकजुट कर अंग्रेजों के खिलाफ उकसाया।10/05 1857 को जेलखाना छोड़ कर कैदी सिपाहियों के साथियों को छुडा लज्जो ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया ।तभी से क्रांति की आग चारों और फैली।

1857के गदर में 22महिलाओं के साथ अंग्रेजों पर आक्रमण किया महावीरी देवी ने।अनूपशहर की चौहान रानी ने इसी समय अपने घोड़े पर सवार होकर अँग्रेजों का मुकाबला किया तथा शहर में स्थित थाने पर लहराते यूनियन जैक को उतार कर उसके स्थान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर साहस का परिचय दिया।
इस स्वाधीनता संग्राम में जो क्रांति 1857 में हुई थी उसमें दिल्ली के समीपस्थ गाँवों में लगभग 255 महिलाओं को मुजफ्फरनगर में मौत के घाट उतारना अंग्रेजों के डर को बताता है। इस संग्राम में भारतीय महिलाओं ने रणचंड़ी की रूप धारण कर अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुये बराबर मुकाबला किया तथा क्रांतिकारियों का संबल भी बनी। नेतृत्व भी किया और यह मिथक भी तोड़ा कि नाजुक तन और कोमल कलाई वाली नारी हथियार उठाना भी जानती है और वक्त पड़े तो जान देना भी जानती है लेकिन कदम पीछे नहीं लेती।
अवंतीबाई –मध्यप्रदेश के रामगढ़ की रानी-अंग्रेजों का प्रतिकार करते हुये उनके द्वारा घेरे जाने पर आत्मोत्सर्ग कर लिया,
मस्तानी बाई बाजीराव पेशवा की प्रिया जो गुप्त रूप से खुफिया जानकारी जुटाकर पेशवा को देती थी।,
मैनावती -नानासाहब पेशवा की मुँहबोली बेटी जिसे बिठूर में नाना साहब का पता न बताने पर जिंदा जला दिया गया।
मोतीबाई -लक्ष्मीबाई की ढाल और उनकी जनाना फौज दुर्गादल का नेतृत्व करने वाली तथा काशीबाई,जूही भी रानी की रक्षार्थ वीरगति को प्राप्त हुई।
बेगम आलिया अवव देश की बेगम ,महिलाओं को शस्त्र कला का प्रशिक्षण देने वाली व महिला गुप्तचरों के सहयोग से ब्रिटिश सैनिकों से युद्ध कर अवध से खदेड़ने वाली।
झलकारी बाई लक्ष्मी बाई के दुर्गादल में कुश्ती,घुडसवारी एवं धनुर्विद्या की प्रशिक्षक। भीष्म प्रतिज्ञा कि जब तक झांसी स्वतंत्र नहीं होगी तब तक न श्रृंगार करेगी न सिंदूर लगाएगी।
अंग्रेजों द्वारा लक्ष्मी बाई को घेरने.के पश्चात मिलती जुलती शक्ल का लाभ लेकर अंग्रेजों को.धोखा देने में सफल रही ।लक्ष्मी को महल से सुरक्षित बाहर निकाल कर अंग्रेजों का मुकाबला करते शहीद हुई।
अजीजबाई भी एक तवायफ थी जून,57 में कानपुर म़े जब क्रांति की योजना बनी तब 400महिलाओं का दल तैयार कर नौजवानों को भी क्रांति हेतू तैयार करती थी। पुरूषवेश में रहने वाले दल का नेतृत्व अजीजनबाई के हाथ में था। शक होने फर हेवलॉक के सम्मुख पेश किया गया। उसके सौंदर्य पर मुग्ध हेवलाक ने माफी माँगने का प्रस्ताव रखा । पर उस क्रांतिकारी वीरांगना ने अपनी अजादी के लिए माफी माँगना स्वीकार न किया तो उसे गोली से उड़ा दिया गया। इस अजीजन ने तात्या टोपे और नाना साहब के बिठुर युद्ध हारने पर नेतृत्व सँभाला था।
जीनत महल ,बेगम तुकलाई सुल्तान ,बेगम हजरत महल जैसे और भी नाम है जो स्वतंत्रता संग्राम में जी जान से अपना दायित्व निभा कर सदैव के लिए अमर हो गये। इतिहास खँगालने पर ज्ञात होगा कि 1857 से लेकर 1947 तक के संग्राम में आजादी की क्रांति म़े महिलाओं का योगदान अमूल्य था। उन्होंने जो आहूतियाँ देकर अलख जगाई उसी के कारण अंग्रजों को मुँह की खानी पड़ी।

मनोरमा जैन पाखी

1 Like · 444 Views

You may also like these posts

ज़िंदगी में गीत खुशियों के ही गाना दोस्तो
ज़िंदगी में गीत खुशियों के ही गाना दोस्तो
Dr. Alpana Suhasini
विवाह समारोहों में सूक्ष्मता से की गई रिसर्च का रिज़ल्ट*
विवाह समारोहों में सूक्ष्मता से की गई रिसर्च का रिज़ल्ट*
Rituraj shivem verma
क्षणिकाए - व्यंग्य
क्षणिकाए - व्यंग्य
Sandeep Pande
जियो तुम #जिंदगी अपनी
जियो तुम #जिंदगी अपनी
MEENU SHARMA
"जिन्दगी में"
Dr. Kishan tandon kranti
जो तू नहीं है
जो तू नहीं है
हिमांशु Kulshrestha
*Move On...*
*Move On...*
Veneeta Narula
आजकल की पीढ़ी अकड़ को एटीट्यूड समझती है
आजकल की पीढ़ी अकड़ को एटीट्यूड समझती है
Sonam Puneet Dubey
..
..
*प्रणय*
दिल बचपन
दिल बचपन
Ashwini sharma
तेरा राम
तेरा राम
seema sharma
9) “जीवन एक सफ़र”
9) “जीवन एक सफ़र”
Sapna Arora
डर - कहानी
डर - कहानी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
The moon you desire to see everyday,  maybe I can't be that
The moon you desire to see everyday, maybe I can't be that
Chaahat
शापित रावण (लघुकथा)
शापित रावण (लघुकथा)
Indu Singh
*अंतःकरण- ईश्वर की वाणी : एक चिंतन*
*अंतःकरण- ईश्वर की वाणी : एक चिंतन*
नवल किशोर सिंह
Ice
Ice
Santosh kumar Miri
2845.*पूर्णिका*
2845.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चल विजय पथ
चल विजय पथ
Satish Srijan
जन्मोत्सव अंजनि के लाल का
जन्मोत्सव अंजनि के लाल का
ललकार भारद्वाज
*प्यार तो होगा*
*प्यार तो होगा*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
रिश्तों की बेशक न हो, लम्बी-खड़ी कतार
रिश्तों की बेशक न हो, लम्बी-खड़ी कतार
RAMESH SHARMA
केवल पंखों से कभी,
केवल पंखों से कभी,
sushil sarna
यथार्थ
यथार्थ
इंजी. संजय श्रीवास्तव
रुखसत (ग़ज़ल)
रुखसत (ग़ज़ल)
ओनिका सेतिया 'अनु '
होते फलित यदि शाप प्यारे
होते फलित यदि शाप प्यारे
Suryakant Dwivedi
*An Awakening*
*An Awakening*
Poonam Matia
वर्ण पिरामिड
वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
दुआर तोहर
दुआर तोहर
श्रीहर्ष आचार्य
यूँ दर्दो तड़प लिए सीने में
यूँ दर्दो तड़प लिए सीने में
Mahesh Tiwari 'Ayan'
Loading...