स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में स्व: श्री नाथूराम वाल्मीकि जी का योगदान
नाथूराम वाल्मीकि जी का जन्म मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड के शहर टीकमगढ़ में आपका जन्म एक गरीब दलित परिवार में धिन्गे वाल्मीकि के घर हुआ था। बचपन में ही आपके माता-पिता का देहांत हो गया था। आपका और आपकी एक मात्र बहिन का लालन-पालन आपकी बुआ श्री मति कैकयी की सानिध्य में हुआ।आप एक अच्छे समाजिक कार्यकर्ता और एक अच्छे वक्ता के रूप में भी जाने जाते थे। आपकी रूचि समाज सेवा और देश सेवा में थी। आपकी दो पत्नियां – श्री मति मथुरा बाई एवं श्री मति – सुन्दर बाई थी। दोनों पत्नियों से आपके चार पुत्र, एवं छः पुत्रियां क्रमशः – उदयप्रकाश, प्रकाशचद्र, अरविन्द, सत्येंद्र, तेजकुवर, गीता, सरल, प्रभा,सविता, सन्ध्या थे। आपका पूरा भरा पूरा परिवार था। आपकी युवावस्था मैं एक ओर दलित अपने अधिकारों के लिए जूझ रहे थे दूसरी ओर आजादी की लड़ाई चल रही थी। आपने निर्णय लिया कि हमें दलितों के अधिकारों के साथ साथ भारत देश की आजादी की लड़ाई में भी भाग लेना चाहिए। महात्मा गांधी जी से प्रेरित होकर आपने निर्णय लिया कि महात्मा गांधी जी के बताये मार्ग से ही हम आजाद भारत का सपना देख सकते हैं। और महात्मा गांधी जी सम्पूर्ण भारत के लोगों से आव्हान किया कि आप सब लोग आजादी की लड़ाई में भाग लीजिए। तभी आपने आजादी के लिए गांधीवादी विचार धारा को अपनाया और सत्य अहिंसा के मार्ग पर चल पड़े। और आपको आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए महात्मा गांधी जी के माध्यम से ही आपके पास एक पत्र भेजा गया जिसमें आपकी भागीदारी के लिए कहा गया। आप 1942-से 1947 तक बराबर स्वतंत्रता संग्राम में कार्य करते रहे। आपने मेहतर/वाल्मीक हड़ताल में विशेष रूप से सक्रिय कार्य किया । और हरिजन सेवक संघ में भी आप सक्रिय रूप से सम्मिलित रहे।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आपका भी योगदान रहा। एक ओर गांधी जी के द्वारा आन्दोलन चलाये जा रहे थे और दूसरी तरफ आप भी अपने क्षेत्र में आजादी के आंदोलनों में सक्रिय रहे इस दौरान आप अपने क्षेत्र में उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर एक साथ चल रहे थे। इस दौरान आपको कई बार देश में बड़े-बड़े महानगरों में एवं कई शहरों में आन्दोलनों में भाग लेने के लिए जाना पड़ा। इस दौरान आपको कई बार अंग्रेज़ी हुकूमत की लाठीचार्ज का भी सामना करना पड़ा। और कई बार जेल में बंद कर दिया गया। जेल भरो आंदोलन में आप जेल भी गये। मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड प्रांत के स्वतंत्रता संग्राम में आपकी पहचान दलित स्वतंत्रता सेनानी के रूप में थी। आजादी की लड़ाई में अग्रेजी हुकूमत ने स्वतंत्रता सेनानियों को पकड़ने के लिए एक फरमान जारी कर दिया था। कि जहाँ भी मिले पकड़ कर जेल में बंद कर दिया जाऐ। उस समय बडे-बडे स्वतंत्रता सेनानियों ने आपके घर आपकी वाल्मीकि बस्ती में शरण ली क्योंकि उस वक्त छोटी छोटी बस्तियों में सरकार का ध्यान नहीं रहता था। और इसी दौरान उन सभी सेनानियों के भोजन की व्यवस्था आपके घर पर ही हुआ करती थी।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आपने और आपके परिवार ने पूरा सहयोग किया। 15 अगस्त 1947 को जब देश को आजादी मिली उस वक्त भी आप अपने साथियों के साथ फरार थे। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद आपको भारत सरकार और मध्य प्रदेश राज्य सरकारों की ओर से यह घोषणा की गई कि नाथूराम वाल्मीकि जी ने अपने पूरे जीवन को दाव पर लगाकर पूरी ईमानदारी के साथ देश की आजादी में अपना योगदान दिया। जिसके लिए आपको सरकार की ओर से एक प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया जो आज भी आपके परिवार के पास है।
आपके स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने पर भारत सरकार एवं मध्य प्रदेश सरकार ने सम्मान में निधि से सम्मानित किया गया। जो पेंशन स्वरूप आपको आजीवन मिलती रही और आपके बाद आपकी पत्नी श्रीमती सुन्दर बाई को भी आजीवन पेंशन मिलती रही। इस के अतिरिक्त आपको रेलगाड़ी सेवा, बस सेवा, यहां तक कि अगर आप एक माह पहले सूचना देते हैं तो आपको हवाई जहाज सेवा भी बिल्कुल मुफ्त थी। आपको महात्मा गांधी जी के द्वारा एक चरखा भी पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया गया था। आपका सम्मान हर स्वतंत्रता दिवस/गणतंत्र दिवस/राष्ट्रीय पर्व पर शॉल श्रीफल के साथ किया गया।
आपने स्वतंत्रता के बाद एक लडाई ओर लडी जो स्वाभिमान की लड़ाई थी। आप जिस जिले/शहर टीकमगढ़ में रहते हैं उस टीकमगढ़ शहर में आपने छुआछूत का बिरोध किया । इस शहर के दलितों को बाजार में चाय तक नहीं दी जाती थी। कोई भी खबाश बाल नहीं काटता था। बच्चों को स्कूल में पढ़ने नहीं दिया जाता था। कुआ तालाबों से पानी नहीं लेने दिया जाता था। दलित पिछड़ो की ऐसी दुर्दशा देख कर आप से रहा नहीं गया और आपने दलित वर्ग को एक साथ लेकर इन सब का पुरजोर विरोध किया। और शहर में छुआछूत को मिटाने में सफल भी रहे। आपने लोगों को बताया कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है।
आप एक समाज सेवक होने के साथ ही एक अच्छे शिक्षक एवं वक्ता के रूप में भी समाज में जाने जाते थे। हरिजन सेवक संघ में भी आप सदस्य के रूप में सक्रिय रहे। आपने वाल्मीकि उत्थान समिति में भी समाज सुधार का काम किया। वाल्मीकि समाज को रहने के लिए जमीन की मांग की ओर वाल्मीकि बस्ती की स्थापना कराई गई। समाज में शिक्षा के विकास एवं शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु आपने प्रशासन से प्राथमिक विद्यालय के लिए जमीन की मांग की ओर जमीन मिलने पर प्राथमिक विद्यालय की नींव रखी गई। आपने वाल्मीकि समाज के बहुत से लोगों को सरकारी नौकरी भी लगवाई। आपकी म्रत्यु 6 नवम्बर 2004 को आकस्मिक हो गई। आपके पीछे आपका पूरा हरा भरा परिवार में नाति नातिन पोता पोति रह गए। आपकी शवयात्रा पूरे नगर टीकमगढ़ में निकाली गई जिसमें हजारों लोगों ने आपको नम आखों से विदाई दी और आपका अंतिम संस्कार जिला प्रशासन की मौजूदगी में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया। आपके देहांत के बाद जिला प्रशासन ने आपकी प्रतिमा ढोंगा टंकी के पास स्थापित कराई गई।