स्वतंत्रता तुम्हारा जन्म सिद्ध अधिकार है,
मुझे कभी नहीं लगा मैं एक चिकित्सक हूँ.
डॉक्टर हूँ, वैध या भौतिक प्रतिभूति हूँ…।
मैं स्वयं को एक सेवक समझने की भूल करता रहा,
लोग बदल चुके थे,लोगों के पैमाईश के पैमाने बदल चुके थे,लोग मतलब के लिये मुझे इस्तेमाल कर रहे थे,
इस सेवा के क्षेत्र में कॉरपोरेट का प्रवेश हो चुका था,यह क्षेत्र धंधा व्यापार बन चुका था,
मैं आज भी पुरानी रीत से काम कर रहा था,
लोगों की नजर में महेंद्र एक अछूत की भांति चिंहित व्यक्तित्व था,
वह अपने कर्म से विचलित होने की बजाय सेवा में समर्पित.
पर मानसिकता को कौन बदलता.।
लोग परम्परा बन चुके हैं,
ऊपर वाला उनका बहम् है.
निर्धारित तो वे करते है,
डोर उनके हाथ है.
वे चाहे जैसे प्रस्तुत करें,
बाकि लोगों को सिर्फ मानना है,
निर्देशक बनी मीडिया,
जिम्मेदारी क्या है,
निभाना नहीं चाहती,
उनको आज भी नहीं मालूम,
निर्देशक का अर्थ क्या है,
चंद चकाचौंध के लिये बिक जाते हैं,
सत्य से उनका कोई वास्ता नहीं हैं,
नाम को डूबोते हैं,
GOD में डारेक्टर हैं,
माता-पिता संरक्षक,
और जनरेटर भी,
किसी को मतलब नहीं,
एक चिकित्सक में तीनों,
लोगों को दूसरा भगवान,
कहने में सुकून मिलता है,
कह देते हैं,
अर्थ से कोई वास्ते नहीं,
पहले दूसरे भगवान की तोहीन करते है,
फिर मारकर पूजा,
सिर्फ दवा देकर ठीक करना चिकित्सक भाव नहीं है,
जो इशारों में ठीक कर दें,
पीठ पर हाथ रख दे,
इलाज संभव है,
लोग पढ़ते हैं,
पर अमल नहीं करते,
उनका व्यवहार बदलता है,
वे दो मुहे हैं,
घर में,
व्यापार में,
असल जिंदगी में,
दोस्ती में उनका,
व्यवहार अलग है,
वे रावण से भी ज्यादा मुख रखते हैं,
उनके मुख से निकलने वाली वाणी,
दस से ज्यादा है,
इंद्रियां दस हैं,
उन्होंने ने मान लिया हैं,
शंकर के तीसरा नेत्र से वाकिफ हैं,
पढ़कर पाना चाहते हैं,
लोगों को मतलब हैं अपने बनाये हुये भगवान से,
वे अपने भगवान को खोजना नहीं चाहते,
उन्हें बाहर के गुरु के वाक्यों में अर्थ लगता है,
वे स्वयं को जानना नहीं चाहते,
वे गुलाम बने रहना चाहते है,
मुक्त होना ही नहीं चाहते,
सबके मतलब के अपने अर्थ है,
पूजा करना चाहते है,
अर्थ से कोई वास्ता नहीं रखना चाहते,
उनका अहित होता आ रहा है,
सोचना नहीं चाहते,
हटकर सोचने वाले,
अलग ही होते है,
पहचानना नहीं चाहते,
उनको मतलब है,
अपनी बात मनवाने से,
यही अहम है,
वर्ण व्यवस्था बना बैठे,
सदियों से मानवता ने इसे तोड़ने की भरपूर कोशिश की,
तोड़ नहीं पाये,
खुद ही बे-दर्द है,
दवा को खोजने चले,
क्या संभव है,
संभवत हो सकता है,
मेरा उत्तर है,
कभी नहीं,
मुक्ति का द्वार खुद से होकर गुजरता है,
कोई और कर नहीं सकता,
तुम जानना चाहते हो,
तुम कौन हो,
जानना भी मत,
क्योंकि तुम गुलाम हो,
मुक्त होना भी नहीं चाहते,
आये और आकर मान लिया,
जानना जरूरी भी नहीं हैं,
मुक्त हो जावोगे,
तुम्हारे जन्म का कोई अर्ध निकले,
तुम खुद नहीं चाहते,
#डॉ महेंद्र अनुभव