(स्वतंत्रता की रक्षा)
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आए दिन ऐसे संकट–
चुनौतियां देते हैं हमको।
आज स्वतंत्र हैं, फिर भी-
दूरदर्शी तो बनना हैं हमको।।
शांति प्रधान हैं आज!
हमारे देश की संस्कृति।
फिर भी लाना हैं हमको–
अपनी शक्ति में जागृति।।
अपनी शक्ति में आज!
वृध्दि करनी हैं हमको।
भारत की स्वतंत्रता की
रक्षा करनी हैं हमको।।
न जाने, कब! किस वक्त!!
सामने आ जाये वह दृश्य।
जो हजारों वर्ष पूर्व आया था,
महाभारत के अंत का वह दृश्य।।
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल
===*उज्जैन*{मध्यप्रदेश}*===
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