“स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत “
यह नारा दिया हमारे प्रधानमंत्री जी द्वारा और यह स्वच्छता संबंधी कार्य कलापों के परिदृश्य भी समय समय पर देखने को मिल रहे हैं परन्तु यह प्रयास तब तक अधिकांशतः फलीभूत नहीं होंगे जब तक कि समाज की सबसे सूक्ष्म इकाई इस ओर पूर्णतः जागरूक न हो।
इस बात को मानने में मुझे कोई गुरेज नहीं कि हम भारत वासी इस बात पर दृढ़ता से अम्ल करते हैं कि- “अपना घर स्वच्छ रहे पड़ोसी का जाए भाड़ में।”
भारतीय लोग अपने घरों को साफ सुथरा रख कर आसपास को गंदगी के ढ़ेर
में परिवर्तित करने में तनिक भी संकोच नहीं करते इस बात से अनभिज्ञ रहते हुए कि अंततः उस गंदगी के दुष्प्रभाव सर्वप्रथम व सर्वाधिक उन्हें खुद ही भुगतने पड़ेंगे।
यदि निचले स्तर पर ही इस तथ्य को न समझा गया तो आगे किस प्रकार बढ़ा जा सकता है।
मेरा यह स्पष्ट मत है कि प्रशासन को सामाजिक संगठनों व गैर सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर ठोस कानूनों की सहायता से “घर-घर स्वच्छ बने
देश हमारा स्वस्थ बने”
का नारा साथ लेकर नव अभियान के लिए कूच करना होगा तभी कुछ संभव है।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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