स्वच्छता
विष्णु सिद्धि स्वच्छ सदन,
निवावां जम्भ गुरु नै शीश।
काव्य कला गुरु जम्भ देवै,
गुरु जम्भेश्वर की बख्शीश।।
गुरु गणपति नै सिर निवावां,
करें वन्दन हम शारदा मात।
विघ्न हरण औ मंगल करण,
जम्भ गुरु आगे जोड़ूं हाथ।।
जिज्ञासा मुझे बहुत घणी है,
हरपल हरघड़ी गुरु में चित्त।
गुरु हरदम सन्मुख रहे मेरे,
मैं लिखता हूँ स्वच्छता वित्त।।
तन मन धौवो संयम होइयो,
स्वच्छता सबक हितकारी है।
सुन्दर वक्षस्थल भारत माता,
रखनी स्वच्छ धरा हमारी है॥
स्वस्थ रह सब जीवन जीवै,
स्वच्छता ध्यान धरै जे कोई।
जो स्वच्छता में सेवा करते,
तापे कृपा जम्भगुरु की होई॥
बीमार पड़े नहीं दुख भोगै,
स्वच्छता जिनके मन माहीं।
स्वयं स्वच्छ औरां नै कहिये,
स्वच्छता जम्भगुरु बतलाई॥
गाँधी गुरु का अनुशरण करै,
स्वच्छता है गांधी का सपना।
स्वच्छता में ही रहती ताजगी,
स्वच्छता को घर-घर रखना॥
‘पृथ्वीसिंह’ है स्वच्छता प्रिय,
स्वच्छता रहे प्रचण्ड कृपाला।
स्वच्छ रहे देश भारत विशाल,
स्वच्छता ईश करै प्रतिपाला॥