स्वंय का दोषी
उपपाद्य को आह्वान दे रहा ,
स्वयं स्वयं को विध्वंस कर रहा ,
स्वस्थ आहार को खाना कूल ,
अस्वस्थ आहार ग्रहण कर रहा।
वसुधा का समूल नाश कर रहा
हयात के लम्हे अपने घटा रहा
आज तरु को लगाना कूल ,
तरू काटना प्रचलित गढ़ा रहा।
कलेवर को अप्रकृतिस्थ गढ़ा रहा ,
सुविधाजनक कृत्य करना चाहता ,
स्वयं को काहिल गढ़ाता ,
तंदुरुस्त ना रह लहता कभी।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या