स्मृति
क्या नहीं पथ यूं तेरा, कि पहुंचे वहां
किया था जहां से कभी तूने आगाज।
थोड़ा तू मुझ पर रहम कर ऐ निष्ठुर
बचपन मेरा मुझको देता है आवाज।
वो अम्मा का आंचल, वो बाबू का प्यार
बरसता था हरदम जी भर के दुलार।
वो ममता मयी मां थी ममता का सागर
थे बाबू भी कम न, वे हिम्मत का गागर।
कई किस्म की लोरी, किस्से कहानी
मुझे याद अबतक है, मां की जुबानी
सींच कर हम सभी को किया यूं खड़ा।
चाहे जितनी भी विपदा हो रहना अड़ा।
ऊंगली पकड़ सबको चलना सिखाया
तभी वर्षों से चल यहां तक मैं आया।
है आशीष उनका सभी संग हरदम
कभी हम न चूके न भटके कदम।
अब भी लगता है यूं माता देती दिलासा
कहते हैं बाबू जीवन तभी जब है आशा
चलते रहना, न थकना न स्वीकार हार
तभी लक्ष्य पाएगा और होगा उद्धार।
भागीरथ प्रसाद