*स्मृति: रामपुर के वरिष्ठ कवि श्री उग्रसेन विनम्र जी के दो प
स्मृति: रामपुर के वरिष्ठ कवि श्री उग्रसेन विनम्र जी के दो पत्र
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श्री उग्रसेन विनम्र जी का समय-समय पर आशीर्वाद मुझे मिलता रहा है। आप प्रतिभाशाली कवि थे। आशीर्वाद-स्वरुप आपकी हस्तलिखित दो कविताऍं आपकी स्मृति को ताजा करती हुईं मेरे संग्रह में मौजूद हैं। कविताऍं इस प्रकार हैं:-
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श्री रवि प्रकाश अग्रवाल के लिए दो वरबै छन्द
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रवि ! प्रकाश का स्रोत्र, ऊर्जा – भण्डार ।
विभिन्न रंगों का दायक, जीवनाधार ॥1॥
जीव- जगत- वनस्पति, सकल दिव्य सृष्टि ।
केन्द्रित व्यापार; हो धी-श्री वृष्टि ॥ 2॥
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विद्या वाचस्पति श्री उग्रसेन विनम्र
एम०ए० (हिन्दी, इतिहास), साहित्य रत्न, विज्ञान रत्न, विशारद ।
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धी = बुद्धि, मेधाशक्ति
श्री = लक्ष्मी
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दिनांक 10 – 2 – 97
काशी की परम्परा सरस्वती-लक्ष्मी के पारस्परिक बैर को
भारतेन्दु, रत्नाकर, प्रसाद जैसे धनि, साहुओं ने कर दिया समाप्त है।
रामपुर काशी-तुल्य बनाया है, रवि प्रकाश ने; रामपुर के रत्न, श्रेष्ठ कहानियाँ, माँ, गीता-विचार के बाद अब ‘जीवन- यात्रा’ पद्य-गद्य लेखन में रवि-प्रकाश, इस काल व्याप्त है।।
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विद्या वाचस्पति श्री उग्रसेन विनम्र
(एम.ए. (हिन्दी, इतिहास), साहित्य रत्न, विज्ञान रत्न, विशारद ।
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1997 में उग्रसेन विनम्र जी की आयु मेरे अनुमान से लगभग पैंसठ वर्ष रही होगी। आप गंभीर प्रवृत्ति के धनी थे। नपी-तुली और संक्षिप्त बात कहते थे। शरीर भारी था। आवाज में भी भारीपन था। चुस्ती-फुर्ती खूब थी। बीमार अथवा निढ़ाल स्थिति में आपको मैंने कभी नहीं देखा। हमेशा सफेद कुर्ता-पाजामा पहनते थे। कभी-कभार जब किसी विषय पर चर्चा होती थी, तब वह एक अध्यापक की भॉंति विषय को विस्तार से समझाते थे। उनकी हॅंसी के क्या कहने ! बच्चों की तरह खिलखिलाकर हॅंसते थे। उनमें छल-कपट नहीं था।
जब मेरी पुस्तकों का विमोचन होता था, तब कृपा करके आप कार्यक्रम में पधारते थे और उसके बाद आशीर्वाद स्वरुप चार-छह पंक्तियां कागज पर लिखकर मुझे दे जाते थे। छंद शास्त्र पर आपकी पकड़ थी। विरबै-छंद का प्रयोग करना तो दूर रहा, आजकल की पीढ़ी में अधिकांशतः ने इस छंद का नाम भी शायद ही सुना होगा। मात्र दो पंक्तियों में अर्थात कुल चार चरणों में मात्राओं के अनुशासन के साथ अपनी बात को कहना विरबै छंद की विशेषता है।