स्मृतियां हैं सुख और दुख
स्मृतियां हैं सुख और दुख
स्मृतियों का होना ही दुःख है
स्मृतियों का होना ही सुख है
गुम हो जांय स्मृतियाँ तो
न कहीं दुःख न सुख है।
न जाने क्यूं जुड़ जाते हैं??
न जाने क्यूं नेह पाते है??
शख्स वो जिसमें अपना कोई पाते हैं!!
बहुत समझाते मन को,,
भला कहां लौटकर आते जो
इस जग से चला जाते!!!
फिर क्यों ये मन भरमाया
क्यूं उसमें अपनापन पाया,
अपने मन बहुत समझाया
समझ समझ कर भी फिर
वापिस उस गली में लौट आता
जिसमें वो शख्स आता रहता।
– सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान