*”स्मृतियाँ”*
“स्मृतियाँ”
स्मृति के दायरे भी ,बड़े अजीब से होते हैं।
भुलाने की कोशिश करते है ,फिर भी दिल के करीब होते हैं।
व्याकुल रहता है मन न जाने क्यों ….
भूली बिसरी यादों को ,सीने से लगाये रहते हैं।
तमाम कोशिशों के बाद भी ,उम्र भर पीछा नहीं छुड़ा सकते हैं।
कुछ हासिल न हुआ ,उन बीते हुए यादों से सिलसिला अब भी जारी है।
यादों की परछाईयों में ,अमिट छाप छोड़ जाती है।
बीते हुए उन लम्हों की यादों से ,एक दूसरे के पास फिर से लौट आते हैं।
मधुर स्मृति सपने संजोये हुए, अनकही बातों के साथ जुड़ जाती है।
जन्म से मृत्यु तक अंतिम सांसो में , स्मृतियाँ जगाती रहती है।
सुखद एहसासों के साथ ,अनजान सफर तय करते हुए सुनहरी यादों में बस जाती है।
शशिकला व्यास