स्पर्श
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध से परे
क्या कल्पना में भी कोई बेहद क़रीब हो सकता है
बिना दैहिक स्पर्श के
कोई भीतर तक अंतर्मन छू सकता है
हाँ, उसकी आवाज़ मेरे कानों से
गुज़रती हुई
मेरे मन को भिगोती है
उसकी आवाज़ की तरंगें
गूँजती हुई मुझे आलिंगन करती हैं
उसके जाने के बाद भी
उसके शब्द मेरे भीतर
मेरे साथ रहते हैं
मुझसे बातें करते हैं
एक संवाद स्वचालित सा
चलता रहता है
वो मुझसे बेहद दूर होकर भी
मेरे बेहद क़रीब है
एक अनछुआ स्पर्श बन
कहीं गहरे मन को छूता है….
©️ कंचन”अद्वैता”