स्पंदन
स्पंदन
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अंतराल है यह विस्थापन
काल चक्र का एक सृजन है
युग बीते क्षण भी बीतेगा
परिवर्तन शाश्वत नियम है ।
हृदय तंतु अदृश्य भले ही
विश्वास अटूट प्रबल रज्जू सम
प्रेम प्रज्जवलित दीप समक्ष
परास्त अंततः अंतर्तम।
अधरामृत जिजीविषा मेरी
आलिंगन की पुनः प्रतीक्षा
यौवन स्पंदन अगाध प्रवाह की
मदमाती वह मधु निशा ।
उत्कंठित है , उद्विग्न नही
चक्षु अविराम दिशा निहारे
चंचल चपल चकोर सा मन
प्रिया तुम्हारा पंथ पखारे।
अवसाद कैसा जब स्वप्न समीप
विरह मिलन विरह है रीत
मुझे तुझे भी जीना होगी
अनंत जन्मों तक यह प्रीत ।
रचयिता
शेखर देशमुख
J 1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू 2, सेक्टर 78
नोएडा (UP)