स्नेह
जब भी तेरा स्नेह मिले,जीवन हो जाए कुसुमित,
तप्त हृदय का कोना-कोना भी हो जाए पुलकित।
आनंद हृदय,प्रफुल्लित मन से गीत सदा मैं गाऊँ,
हे जगदंबे!तेरी चरण में, मैं अपना शीश नवाऊँ।।
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रचना- पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित
निकेश कुमार ठाकुर
गृहजिला- सुपौल
संप्रति- कटिहार (बिहार)
सं०-9534148597