स्नेह-बदली
“स्नेह-बदली”
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स्नेह-बदली
तुम बनकर बरसो !
मेरे हृदय-आकाश में !
कभी बरसो तुम !
सावन में !
और कभी बरसो
मधुमास में ||
मौहब्बत का
तुम भाग्य लिखो।
मेरे दिल की धड़कन में
जज्बातों का भाग्य बनो !
सूने दिल की तड़पन में ||
अमावस्या को दूर करो !
तुम बनो पूर्णिमा माघ की !
हे ! “दीप-शिखा” हृदय बस जाओ !!
तुम बनकर होली फाग की ||
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”