स्नेह की तड़प
शीर्षक :- स्नेह की तड़प
रचना ने कभी पिता का प्यार महसूस नहीं किया था। उसके हिस्से का प्यार उसकी बड़ी बहन रानी को ही मिलता। ऐसा नहीं कि रचना में कोई कमी थी या काली कुतरी थी। रानी के मुकाबले उसका रंग साफ था।अंतर्मुखी थी और माँ के हर काम में मदद करती। सुबह कालेज जाना होता था तो साफ सफाई करके नाश्ता वह बना देती थी। खाना माँ बनाती थी। शाम का भोजन रचना बनाती। पर कभी भी कोई तारीफ पिता से न मिलती। कभी सहेलियों से सीखी रेसिपी आजमाती। चटखारे लेकर सब खाते लेकिन माँ के सिफा हौसला कोई न बढ़ाता।
रानी को सुबह की चाय बिस्तर पर चाहिये होती थी।बिना ब्रश किये वह पी जाती।कुछ कहो तो पढ़ाई का बहाना। खाना पानी सब कमरे में। खा पी कर या तो सो जाती या शाम को छत पर टहलती रहती। कोई चीज की जरुरत होती तो रचना को आवाज देती।अक्सर रचना सोचती भी कि मैं नौकरानी हूँ क्या इसकी?बहन जैसा बर्ताव कभी करती ही नहीं।अक्सर माँ से यह बात कह भी देती पर माँ उसे ही बहला देती।
जेब खर्च दोनों को मिलता था ।लेकिन पढाई से संबंधित स्टेशनरी या कोई बुक रचना जहाँ अपने जेबखर्च के पैसे से खरीदती वहीं रानी अपने पैसे जमा करती और पापा या भैया उसकी सारी जरुरतें पूरी करते। रचना को यह सौतेला व्यवहार समझ न आया।
इस चक्कर में वह बुझी बुझी रहती पर कालेज में खूब हँसती बोलती। हर आयोजन में हिस्सा लेती।
रानी अक्सर इस बात से चिढ़ कर घर में आकर शिकायत करती और रचना को डाँट पड़ जाती।
समय बीत रहा था ।रानी फायनल में आ चुकी थी और रचना सेकंड इयर में।
तभी पता लगा घर में मेहमान आने वाले हैं ।सारे घर में साफ सफाई हो गयी।पर्दे भी धुल के लग गये। खाने पीने का मैनू भी तैयार था ।चारों सब्जियाँ रानी को बनानी थी ।पूरियाँ माँ के जिम्मे।दही अचार पापड़ तो थे ही। मिठाई और नमकीन बाजार से ।
रानी के लिए मेजेंटा कलर का नया सूट आया था। रचना के लिए कुछ नहीं। फिर भी वह चुप रही।कोई नयी बात तो थी नहीं यह भेदभाव। पर बुरा जरुर लगा रचना को ।आँख छलछला आई पर चुपके से पौंछ ली।
रचना से दो सूखी ,दो ग्रेवी वाली सब्जी बनाई थी साथ में लाल चटनी भी बनाई थी ।पूरियाँ गर्म तली जानी थी। तभी फोन से सूचना मिली कि बस दस मिनिट में मेहमान पहुँच जायेंगे।रचना को आदेश मिला कि जाकर कमरा देख आये सब कुछ ठीक तो है।रचना ने जाकर देखा,सोफा पर नया कवर रात को ही चढ़ा दिया था।कुशन कवर भी चढ़ा दिये थे जो खाली वक्त में उसने घर पर तैयार किये थे। मेजपोश भी कुशन की मैचिंग से उसने बनाया था।
चारों तरफ अच्छे से देख कर वह वापिस आई और एक ट्रे में पानी का जग और कुछ ग्लास लेकर जाने लगी। ग्लासों को भी उसने क्रोशिया के छोटे कवर से ढाँका हुआ हुआ था।
“ये अभी क्यों ले जा रही हो?”रानी ने अचानक आकर तेज आवाज में पूछा नये सूट के साथ मैंचिंग ज्वेलरी और हल्का मेकप भी किया हुआ था रानी ने
“तो कब ले जाऊँ ?मेहमानों के आने के बाद या उनके माँगने पर ।?”रचना ने पूछा। वह रानी का साज सिंगार देख चौंक गयी थी।
“रचना ,पानी रख कर आ जल्दी और चाय चढ़ा दे। वो लोग आ गये।”माँ की आवाज सुन रचना जल्दी से ट्रे कमरे म़े मेज पर रख आई।
भाई,पापा दोनों मेहमानों को लेकर ऊपर आ रहे थे। रानी के चेहरे पर जैसे गुलाब खिल गये।
“इसे आज हुआ क्या है?इतनी तैयार क्यों हुई है?बैठ गयी नये कपड़े पहन कर ताकि काम न करना पड़े।”रचना बुदबुदाई
चाय उबल ही रही थी तब तक रचना ने प्लेटों में करीने से नाश्ता सजा दिया।बाजार के नाश्ते में उसने लाल चटनी व सब्जियों के साथ रवा मिलाकर बनाया गया चीला भी रख दिया था।
“रुको,तुम नहीं,रानी लेकर जाएगी।”
“मतलव..? वो महारानी और नाश्ता लेकर जाएगी?”रचना टोके जाने पर चिढ़ गयी आज
“ला दे ट्रे..।”कहते हुये रानी ने उसके हाथ से नाश्ते की ट्रे ली और चली गयी।रचना को मामला समझ तो न आया पर बुरा लगा।ऐसा क्या है जो उससे छिपाया गया। इससे पहले घर में कोईभी आता वही जाती थी और आज ….।सोचते हुये उसने चाय केतली में छानी। करीने से कप प्लेट सजाये ।रसोई से निकली ही थी कि रानी फिर आ गयी। उसके हाथ से चाय की ट्रे लगभग झपटी। रचना ने भी बिना हील हुज्जत के दे दी।
पर माजरा क्या है ?यह समझने के लिए वह अपने लिए कप म़े चाय डाल कमरे के दरवाजे की ओट में खडी हो सुनने लगी।
“और बेटे ..यह क्या आपने बनाया है ?”एक बुजुर्ग से सौम्य व्यक्ति ने पूछा
“जी अंकल ..।”
“किस चीज से बना है?बड़ा स्वादिष्ट है। ”
“जी ..रवा से बनाया है। आप लाल चटनी के साथ खाकर तो देखिये।”रानी ने बेहिचक झूठ बोल कर तारीफ बटोर रही थी।
“इसे घर के काम का बहुत शौक है। जब भी पढ़ाई से खाली होती है कुछ न कुछ बनाती रहती है। “पापा का स्वर था
“अच्छा..वैरी गुड। बेटा ये कुशन तो बाजार के हैं न?”साथ आई महिला ने पूछा
“नहीं आँटी जी। हाथ से बनाये हैं ।”
“ओहह..और यह ग्लास कवर भी ?”
“जी आँटी।”
“बेटे ,मुझे तो यह रवा का चीला अच्छा लगा। क्या एक और बना कर ला सकती हो?”
रचना तेजी से दरवाजे की ओट से हटी और रसोई में पहुँच तवा चढ़ा दिया।
“रचना,एक चीला और बना दे। वो लोग माँग रहे हैं।”
“तो बना ले ना!मना किसने किया?तूने ही तो बनाया है न सब।”
“रचना..फालतू बातें बाद में करना।”कहते हुये माँ ने डपटा।
रचना ने दो चीले बना कर प्लेट पकड़ा दी
“क्यों झल्ला रही है आज।क्या हुआ है तुझे?”
काम करूँ मैं और आप लोग तारीफ करो उसकी. मेहमानों से भी झूठ बोला ।क्यों?रानी के लिए नये कपड़े आये कोई त्यौहार तो नहीं था आज फिर भी।पर मेरे लिए ??याद करो कब आये थे?यही होता है हमेशा।”नीर भरी बदली बरस पड़ी
“पागल ,वो लोग रानी को देखने आये हैं ।सब कुछ ठीक रहा तै आज संबंध पक्का हो जाएगा।”माँ के स्वर में मिला जुला भाव था
“झूठ बोल कर ?रिश्ता पक्का हो गया तो ससुराल में क्या करेंगी ये महारानी?चाय भी बनाई है कभी ?” हर्ष के साथ विषाद भी था रचना के चेहरे पर
कमरे से हँसने की मिली जुली आवाज आ रहीं थी।
तभी पापा अंदर आये
“सुनो, खाना तैयार है न?उनकी तरफ से लगभग हाँ है ।रानी से बहुत इम्प्रेस हैं। लड़का भी खुश लग रहा है। ।”
“भगवान का लाख धन्यवाद जी। हाँजी खाना तैयार है। लगा दूँ क्या ?”
हाँ ,जब तक मैं उनको घर का बाकी हिस्सा दिखा रहा हूँ तब कर वहाँ से नाश्ते के बर्तन हट के भोजन लग जाना चाहिये।”कहा तो माँ से गया था पर यह आदेश रचना के लिये था
और सुनो..इसको बोल देना ,यह लड़के वालों के सामने.न आये। वैसे भी बोल दिया है कालेज गयी है ।शाम तक आयेगी।”
रचना का चेहरा तमतमा आया। वह सकते में रह गयी।तभी माँ ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुये कहा जी ठीक है सब हो जाएगा
वो लोग घर के ऊपरी हिस्से म़े जाने लगे तो रानी कमरे में जाकर लेट गयी तब रचना गुस्से में कमरे में गयी और सब बर्तन समेट कर ले आई।
सब साफ कर सब्जियों के डोंगे अचार दही व प्लेट कटोरी सजा आई।फिर रसोई म़े आकर चुपचाप पापड़ तलने.लगी।पर उसकी आँखों से रिमझिम बरसात हो रही थी।तारीफ बेशक कभी न मिली पर यह अपमान..। सीईईईईईई। उसका हाथ गर्म तेल म़े पड़ गया था।
“क्या हुआ ??”
“कुछ नहीं..।”कह कर वह अब सलाद बनाने लगी थी। हाथ पर जलने से जलन हो रही थी और फफोला पड़ गया था पर यह जलन उस अपमान से कम ही थी जो अभी जन्मदाता कर के गये। सलाद की प्लेट व पापड टेबिल पर सजा कर रख रही थी कि मेहमानों के ऊपर से आने की आहट सुनाई दी। वह तेजी से रसोई में लौट आई।
“अरे वाहहह….बहुत हुनर है आपकी बेटी म़े साहब।”उन बुजुर्गव्यक्ति की आवाज गूंजी।वह लोग कमरे में आ चुके थे।
“रानी बेटा ..भोजन ले आओ।”पापा ने आवाज लगाई
रानी तुरंत रसोई में आ गयी। मम्मी पूरियाँ तल रही थी व रचना बेल रही थी।
मम्मी पुरियाँ दो..
रानी ने रसोई के दरवाजे से दबी आवाज में कहा। रसोई की गर्मी कहाँ सहन होती थी उसे
“रचना,जा पूरी दे दे।”माँ भी आज रानी की खुशी में रचना का दर्द भुला बैठी थी
रचना ने भरी आँखों से थाली में पूरी निकाल कर पकड़ा दी।रानी ने व्यंग से उसे देखा और मुस्कुराते हुये चली गयी।
वहाँ भाई ने सब प्लेटों में सब्जी अचार दही आदि परोस दिया था।रानी ने सबकी प्लेट में पूरी परोसी।
खाने की तारीफ होनी ही थी।रचना के हाथ में स्वाद था। सबने.तारीफ करते हुये भोजन किया।सब लोग समझ रहे थे यह रानी ने बनाया है।
भोजन से निपटे तो रचना रसोई का फैला सामान समेटने.लगी थी। रानी को उन लोगों ने साथ ही बैठा लिया था खाने के.लिये ।भाई आकर रसोई से सब्जी पूरी आदि ले जाकर सर्व करते रहे।
“सुनो ..तुम्हें बुला रहे हैं वो लोग। रानी को कुछ शगुन देना चाहते हैं तो क्यों न हम भी लड़के को.शगुन दे दें?”पापा ने रसोई में आकर कहा पर उनकी निगाहें रचना पर जमी हुई थीं।
“जी, यह तो बहुय अच्छी बात है।बस दो मिनिट में आई।”कहते हुये माँ रसोई से फुर्ती से निकल.गयी।
कुछ देर बाद सब खुश थे रानी का रिश्ता पक्का हो गया था। एक दूसरे को मिठाई खिलाई जा रही थी।रचना को किसी ने पूछा भी नहीं ।मेहमानों के जाते वक्त भी रचना को न मिलवाया गया। वह रसोई निबटा कर चुपचाप कमरे में चली गयी।
उधर सबरानी के पास थे।माँ भी वहीं बैठी थी। एक बेटी की खुशी में वह भी भूल चुकी थीं कि दूसरी बेटी भूखी सो गयी। जिसकी आँखों से बहते आँसू भी हाथ के फफोले की जलन और दिल का दुख कम न कर सके।
परीक्षा के बाद शादी की तैयारियाँ शुरु हो गयी। रचना और भी ज्यादा चुप चुप रहने लगी थी तो रानी ज्यादा ही मुखर व खिली खिली।
पूरी शादी में बिना आराम किये रचना भागदौड़ करती रही पर तारीफ पर सिर्फ रानी का हक था।
आज बारात आने वाली थी ।जोर शोर से तैयारियाँ चल रही थी। हलवाई अलग चीख पुकार मचा रहे थे।
तभी पापा हड़बड़ाये से आये । रचना माँ के साथ बैठ रानी का सूटकेस सजा रही थी। गज़ब हो गया ।बात खराब हो गयी रानी की माँ ।
क्या हुआ जी
हलावाई को चार टीन शुद्ध घी के दिये थे कि जितना लगे लगा लो पर सामान बढ़िया बनना चाहिये .
हाँ ,तो ..इसम़े क्या हुआ
हलवाई कह रहे हैं दो टीन खाली हैं ।अब इतना जल्दी कहाँसे इंतजाम करूँ ।
रचना ने चुपचाप उठ कर उन्हें पानी दिया
“आप मत घबराइये।कोई बात खराब नहीं होगी।”कहते हुये हलवाइयों की तरफ दौड़ लगा दी
“तू उधर कहाँ जा रही है .नाककटायेगी क्या मेरी?”पापा चीखे तब तक रचना हलवाईयों के पास पहुँच चुकी थी ।
“हाँ अंकल ,क्या क्या बन गया और क्या रह गया?”
“बेटा बस मिठाई बनी है ।बाकी नमकीन ,आदि और भोजन बाकी है” ।
“तो आप लोग हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे हैं?रचना ने इधर उधर नज़र दौडाते कहा। वह सारा सामान खोल कर देख रही थी।
“बेटा ,जितना घी दिया था वो मिठाइयों में खर्च हो गया ।”
चारों टीन ?
“दो ही टीन दिया था..।जो कडाही में बचा है बस वही शेष है।और इसम़े क्या बनेगा?हलवाई ने काइयांपन दिखाया।
तब तक रिश्ते के एक अंकल आ गये
“बेटा ,तू यहाँ क्या कर रही है?जाकर अपने बाप को भेजो ..नाक कटवानी है क्या उन्हें खानदान की?”
इन अंकल को रचना अच्छे से जानती थी। और वो उन्हें वहाँ मँडराते व हलवाई को इशारा करते देख रही थी। दाल म़े कुछ काला है।
तभी एकहलवाई उठकर टेंट का परदा ठीक करने.लगा। यद्यपि रचना की नज़र उधर पड़ चुकी थी पर उसने कुछ.कहा नहीं।
ठीक है मैं पापा को बोलती हूँ तब तक आप तैयारी करो।
कहते हुये रचना आगे बढ़ गयी और थोड़ी दूर जाकर अचानक मुड़ के देखा तो व़ अंकल और हलवाई ठहाका लगा रहे थे।रचना नज़र बचा कर दूसरी ओर से वापिस आई और इस बार टेंट के पर्दे के पास थी वह। वहाँ रखा सामान हटाते हुये धीरे से पर्दा हटाया तो घी के टीन दिखे ।रचना ने उठा कर कंफर्म कर लिया कि भरे हुये हैं।
उसने इधर उधर देखा तो शामियाने वाले कुछ सामान लेकर जा रहे थे। उसने उनके पास जाकर रोका और अपनी मदद करने.को.कहा।
फिर उनकी मदद से दोनों टीन चुपचाप उठवा कर पीछे ही पीछे कमरे में ले आई।
पापाअभी तक वहीं बैठे.हुये थे। माँ उन्हें तसल्ली दे रही थी।
“ये रहे घी के टीन। काम रुका पड़ा है ..शुरु करवाइये।”भाई भी वहीं उतरा मुंह लेकर खड़ा था। उसी से कहा रचना ने
पापा झटके से उठे…”ये कहाँ से ले आई?”
“वहीं थे ,बस साजिस थी काम खराब करने की। सही.वक्त पर समझ आ गयी।”
“मतलव …अगर वहाँहोते तो हमें न दिखते?और साजिश कौन.करेगा?कहीं तेरी ही तो करतूत नहीं ?रानी से जलती जो है तू।”पापा ने आँखें लाल.की
रचना हतप्रभ रह गयी ।अपनी सगी बहन के कारण बचपन से ही अपमान सहती आई है वो ।पर अब तो जैसे पत्थर बन गयी थी वो ।
“मुझे क्या मिलेगा यह सब करके?और मैं तो यहीं हूँ माँकेसाथ …..हाँ जानना है तो बाडमेर वाले अपने भाई से पूछो ।हलवाई के साथ साँठ गाँठ करकेउन्होंने.ही छिपवाये थे। बाकी आप जो सोचे।”कहते हुये रचना बिना उनकी ओर देखे चली गयी।
पिता भाई और माँ उसकी ओर देखते रह गये।
मनोरमा जैन पाखी