स्नेहिल प्रेम अनुराग
– स्नेहिल प्रेम अनुराग
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मुझे नहीं पता प्रेम कैसा होता है,
नहीं पता प्रेम में क्या होता है
हां,, इतना जरू पता है कि,,
मैं,जो भी कर्म करती हूं
वो ही प्रेम कै लिए परिभाषित होता है।
ईश्वर, जन्तु और मानव
हो वनस्पति या मेरी किताब
सबसे रहता मेरा स्नेहिल बर्ताव।।
वहीं स्नेह रूपी प्रेम मेरी खुशी बनता
हर्ष अति सुन्दर आनन्द उर भरता।।
जीवन में बढ़ते बढ़ते कदम मेरे
और घटती हुई उम्र के फेरे
मानव जीवन में आने को साकार करता।
मेरी आदत से ,मेरी बातों
नहीं किसी का दिल दूखे।
मन मेरा यह कदापि नहीं चाहता।।
जाने अंजाने में गर कोई ग़लती
हुई मेरी बातों से ,,
सच कहता ‘सीमा ‘मन माफी चाहता।
जीवन सफर में यूं तो मिलते रहते
एक-दूजे से अकस्मात,
स्नेहिल भावना से बातचीत में
बढ़ जाती मुलाकात।
फिर,,जाना छोड़ के पड़ता है
स्टेशन,छूट भी जाता साथ,
यादें मधुर बनी रहती सदा,,
यदि रहता वो प्रेम सच्चा अनुराग।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान