स्थिरप्रज्ञ
बनूँ हवनकुंड की पावक मैं,
आहुति यज्ञ की हो जाऊँ।
सुख और दुःख में बनूं सम्यक,
अब स्थिरप्रज्ञ मैं हो जाऊँ।।
हो स्थिरचित्त हृदय मेरा,
मन में कोई उद्गार न हो।
अब सुख में रहूँ ना उल्लासित,
और दुःख में हाहाकार न हो।।
मेरे ईश्वर तेरी शरण में आ,
अब महाप्रज्ञ मैं हो जाऊँ।
सुख और दुःख में बनूं सम्यक,
अब स्थिरप्रज्ञ मैं हो जाऊँ।।
जीवन से ऐसी सीख मिली,
जीवन ही दर्शन बना दिया।
अब कोमल, स्नेहिल हृदय को भी,
आध्यात्म का आँगन बना दिया।।
हे ईश्वर तेरी कृपा हो तो,
हर विषय-विज्ञ मैं हो जाऊँ।
सुख और दुःख में बनूं सम्यक,
अब स्थिरप्रज्ञ मैं हो जाऊँ।।
शिव सा संकल्प रखूँ मन में,
बनूं नीलकंठ सी जीवन में।
मन में सदैव सम्यक विचार,
रहे सम्यकदृष्टि अंतर्मन में।।
छल, कपट, प्रपंच व द्वेष, दम्भ,
से सदा अनभिज्ञ मैं हो जाऊँ।
सुख और दुःख में बनूं सम्यक,
अब स्थिरप्रज्ञ मैं हो जाऊं।।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’🖊️