स्त्री
आदि की अर्ध
अनादि की अर्थ
ब्रह्म ki चेतना
भ्रम की वेदना
सकल माया उस की परिधि
सकल त्याग उस का सहवास
शून्य की उपमा
जीवन की आस
वो जननी है :
वो जनती है
आस ,स्वास और श्रृंगार
वो श्रृंगार की जननी
सृजन करती प्रेम का
पायल हैं किलकारियां
चूड़ियां हैं अठखेलियां
नथ उस का अल्हड़पन
काजल उस का वेग
नयनों की ओट में संभलता
उसी के इशारों पर बिखरता
सृजन का संयम !
श्रृंगार की पराकाष्ठा !
फिर भी बस ठहराव
शायद ब्रह्मांड का ॐ !
स्त्री !