स्त्री
मैं अब तुम जैसा लगने लगा हूँ
मैं सोचता था हम तुम अलग हैं
तुम सुंदर हो और मैं handsome
पर मैं चुपके से ख़ुद को सुंदर कहता हूँ
कभी कभी
ये सब तुमसे मिलने के बाद ही हुआ है
तुम सुंदर हो ये मैं देख सकता हूँ
महसूस कर सकता हूँ
अपना आँकलन नहीं कर सकता
इसलिए तुम में अपने आप को देख लेता हूँ
कैसी विचित्र बात है
पुरुष को सुंदर कहा जा सकता है क्या?
अगर कहा जा सकता है
तो पुरुष और स्त्री फिर एक ही हुए ना?
फिर एक ही हैं तो समानता क्यों नहीं है?
लो मैं अपनी बात करते करते फिर से
सामाजिक मुद्दे पर आ गया
बात तो हमारे प्रेम की हो रही थी
शायद यही एक फ़र्क़ है पुरुष ओर स्त्री में
स्त्री प्रेम में डूबी रह सकती है
पुरुष अपने अंदर की स्त्री को
जगाए नहीं रख पाता हर वक़्त
अगर रख पाता तो
हम सब प्रेम में डूबे होते
प्रेम में डूबा इंसान
सिर्फ़ प्रेम ही करना जानता है
प्रेम में सब कुछ सुंदर ही लगता है
handsome का concept
नहीं नज़र आता है फिर
माँ जैसे बच्चे को सुंदर ही कहती है ना
हिरन का बच्चा भी सुंदर ही कहलाता है
सुंदर बगीचा, सुंदर घर,
सब कुछ जो मन को अच्छा लगे
वो सब कुछ सुंदर
मैं जब भी तुम्हें अच्छा लगूँ
तुम भी मुझे सुंदर ही कहना
तुम्हारे कहने से मैं तुम्हारे
ओर क़रीब आ जाऊँगा
मैं तुम जैसा बन जाऊँगा
कहना पास आने जैसा है
देखना ओर क़रीब ला देता है
तुम आँखो से ही कहना
मन से ही देखना
मैं भी हृदय से पढ़ लूँगा सब कुछ
फिर तुम्हारी सुंदरता चरम पर होगी
उस दिन मैं भी सबसे ज़्यादा सुंदर लगूँगा
उस दिन मैं पूर्ण स्त्री बन जाऊँगा
@संदीप