“स्त्री”
एक स्त्री प्रेम में सर्वस्व दान कर देती है,
वह निश्छल, निर्मल, नि:स्वार्थ भाव से
स्वयं को सौंप देती है…!
मगर एक पुरूष प्रेम में
नि:स्वार्थ होने का स्वांग कर,
एक निश्छल स्त्री को छलते रहता है;
अंततः एक स्त्री सर्वस्व लुटा कर,
इस संसार से स्वयं को जुदा कर लेती है ;
एक स्त्री प्रेम में सर्वस्व दान कर देती है…!!
(स्वरचित)
स्नेहिल कान्त “स्नेही”
पूर्णिया महाविद्यालय पूर्णिया