स्त्री
स्त्री …..
अक्सर तुनकमिजाज सी लगती
कभी बहुत रोती
कभी बहुत हंसती।
छोटी छोटी चीजों
को मचल जाती अक्सर ……
और बडे बडे अभाव
झेल जाती हंसकर …..
हां थोडी अजीब होती है
पर दुख में करीब होती है …..
प्यार करती है
दिल के कोर से ….
संभालती है रिश्ते
हर तरफ हर ओर से…..
उसका अजीबपन…..
चंद्रमा की तरह
घटता बढ़ता उसका मन ….
समस्या नहीं
सहज अदा है उसकी।
समझो नहीं
महसूस कर देखो कभी
योगिता तिवारी