स्त्री
स्त्री सृष्टि है
जननी है
ममता है
पालक है
परिवार है
अनकहे भावों
को समझती है
पर अक्सर उसमे
उलझ जाती है
पुरुष कभी नही
पा सकता थाह
उसके अन्तर्मन की
क्योंकि जन्म से
विभिन्न भावों से
जूझती हुई वह
न जाने वो कब
हो जाती है
बहुत समझदार
पर बच्च्रे की तरह
खुद खोल देती है
अपने दिल के तार
स्त्री जिसको अपना
समझे एक बार
सलिल शमशेरी ‘सलिल’