स्त्री हो तुम…….हद मे रहो अपनी…..
स्त्री हो तुम….हद मे रहो अपनी
हमेश यही तो हमने पुरुष को कहते सुना है ॥ सारा जीवन पुरुष ने जिया अपनी स्वेच्छा से।
और हम पीछे पीछे चलते रहे उनकी इच्छा से।
कब पुरुष की सहमति के बिना हमने कोई ख्वाब बुना है॥
कभी पिता,कभी पति,कभी पुत्र,कभी भाई।
स्त्री कब किसी से अपने मन की कह पाई।
शब्द मौन हो गये उसके पुरुषत्व की इन आँखों में
अपनी मर्जी से कहाँ कुछ उसने अपने लिये चुना है॥
न किसी पर भी हक़ सारा जीवन बस संरक्षण।
पुरुष ने ले लिया अपने हाथों में स्त्री का क्षण प्रति क्षण।
भूल ज़रा सी काबिले माफ़ी होती नही
कहाँ पुरुष के दिल में उसके लिये करुणा है॥
स्त्री का तो पूरा जीवन ही है समर्पण।
पुरुष ने कब किया है अपना सर्वस्व अर्पण।
छुप छुप कर रोना है इर हँस कर हर रिश्ता निभाना है॥
स्त्री के अंतर्मन में प्यार क्षमा का सागर पुरूषों से गहरा लाख गुना है॥
धूमधाम से मनाते यहाँ पुरुष बेटी महिला मातृ दिवस।
भावनाओं को समझो उनकी इतना ही तुमसे चाहती है बस।
पुरुषत्व कायम है तुम्हारा क्योंकि हमने सीखा झुकना है
कुछ भागीदारी है हमारी भी तुम्हारे मान सम्मान में बस इतना ही तुमको समझाना है॥
स्त्री हो तुम…. हद में रहो अपनी
हमेशा यही तो पुरुष को कहते सुना है॥