स्त्री बनाम पुष्प
ओ सरस् सुकोमल सुंदर
आकर्षक पुष्प!
मेरे प्यारे घुंघराले बालों के
आभूषण पुष्प!
मुझे हैरत हुई ये जानकर
कि तुम्हें पीड़ा पहुँची है
क्योंकि तुम्हारी तुलना
की जाती है स्त्री से।
गलत नहीं होते हो तुम
जब कहते हो स्त्री को कठोर,
क्योंकि अबला नहीं है
आज की स्त्री।
परन्तु असंवेदनशील कहना
निश्चित ही आक्षेप लगाना है।
हाँ, अलग हो तुम
स्त्री से पूर्णतः अलग।
स्त्री ममत्व की,
अपनत्व की खान है,
तुम आकर्षक हो,
स्त्री आकर्षण है।
तुम साधन हो प्रेम के
स्त्री साधना है।
प्रेम का पर्याय है स्त्री।
बेशक तुमने कंटकों का
दंश सहन किया है,
सहनशील हो तुम
किन्तु स्त्री में सहनशीलता के साथ
दया, करुणा और सुदृढ़ता भी
समाहित है।
त्याग और समर्पण में
कोई सानी नहीं है स्त्री का।
वैदिककाल से ही अपाला,
गार्गी, मैत्रेयी, लोपा, घोषा,
मुद्रा, रत्नावली इत्यादि
महाविदुषी स्त्रियों ने
लोहा मनवाया है
अपनी बुद्धिमत्ता का।
मेरे प्यारे पुष्प!
अच्छा लगता मुझे
जब तुम स्त्री के साथ
अपनी तुलना पर
पीड़ा पाने के स्थान पर
प्रफुल्लित होते।
स्त्री के गजरे में स्थान पाकर
तुम्हारा महत्व
तुम्हारा सम्मान बढ़ता है
यह हृदयतल से स्वीकारते।
तुम सुंदर हो
जब तुम पुष्प हो
तुम सुंदरतम हो
जब तुम स्त्री के आभूषण हो।
संजय नारायण