स्त्री चेतन
कालचक्र पे आश्रित जीवन,
चुनौतियों का है संकलन,
गंतव्यता की ओर अग्रसित मन,
कर्मयोगी बनने का करता प्रयत्न।
क्षण भंगुर उत्कंठित अंतर्मन,
सामाजिक बेड़ियों से है गमगीन,
बेडिया ; चहारदीवारी की, पुरुषत्व का, भावनात्मक यातना का।
स्वपन ओज़ करते निषेचन,
प्रस्फुटित हुआ सुनम्य कण – कण ,
रोम – रोम हुआ प्रमुदित एंव हृदय प्रकाशवान,
पड़ाव हुए समीप एंव पंथ दृश्यमान।
पुनः प्रतिनिवतन कसौटियों से आवृत चेतन,
प्रवाद न हुआ व्यतिरेक एवं मुकाम बना कठिन,
प्रवाद ; नारीत्व का, अस्तित्व का, स्वाभिमान का ।
मृगतृष्णा मिथ्या का हुआ अवसान,
सांसारिक अवधारणाओ का हुआ खण्डन,
फतह हुई नारीत्व का, अस्तित्व की हुई पहचान,
नारी ही है सृष्टि की अग्रदूत एवं सृजनदायिनी ।
मौलिक एवं स्वरचित ।
स्तुति कुमारी
(Astuti Kumari)
मोतिहारी,बिहार ।